कांग्रेस पार्टी जो कभी केंद्र से ज्यादा दिन सत्ता से दूर नहीं रहती थी , आज 10 सालों से सरकार से बाहर है।यह इतिहास में पहली बार हुआ है। लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं को एसी रूम में बैठकर सोशल मीडिया चलाने के अलावा कहीं ज्यादा आप देखेंगे नहीं। या तो ये डर है ,या कंफर्ट जोन है कि कभी न कभी हमारी वापस होगी। हालांकि यह भी हकीकत है कि कांग्रेस को विपक्ष में रहने का अनुभव ज्यादा नहीं है और उससे ज्यादा बड़ी हकीकत ये कि वह यह इसे सीखना भी नहीं चाहती। पिछले 10 सालों में एक भी ऐसा बड़ा आंदोलन या विरोध कांग्रेस की ओर से देखने नहीं मिला जो सत्ता पक्ष की नाक में दम कर दे। इसके दो कारण हो सकते है। एक तो यह कि भाजपा सब अच्छा कर रही है या तो ये की टूटी बिखरी लग रही कांग्रेस के पास जन आंदोलन की ताकत खत्म हो गई। भारत जोड़ो यात्रा के दो चरण अच्छे कदम थे लेकिन न तो ये जन आंदोलन थे , न ही अपने विजन को दिखाते कदम। अब समय लोकसभा का है और अभी भी समय है कि कांग्रेस अपने विजन के चलते कम से कम 100 सीट तक पहुंच सकती है। कांग्रेस ने हाल ही में अपना घोषणा पत्र का प्रारूप जारी किया है।जो की भारत की वर्तमान समस्या का एक बेहतर समाधान है। लेकिन इसे जनता तक कैसे पहुंचाए यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस का घोषणा पत्र प्रतिमाह महिला को 6000 रुपए देने की बात करता है साथ ही केंद्रीय नौकरियों में महिला को 33% आरक्षण देने की। जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में बहुत बड़ा कदम होगा।इससे महिला में स्वरोजगार बढ़ेगा जिससे देश के लघु, छोटे उद्योग भी रफ्तार पकड़ लेंगे। साथ ही महिला स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति में सुधार होगा। विश्व के सबसे युवा देश में युवा को रोजगार देकर भारत को विश्वशक्ति बनाने का कदम भी कांग्रेस का घोषणा पत्र दिखलाता है। जिसमें उन्होंने केंद्र में 30 लाख पदो में भर्ती प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए परीक्षा कैलेंडर बनाने की बात करती है।युवा के लिए यह उनकी जवानी में सरकारी नौकरी के रोडमैप देगा तो सरकार चलाने एक मजबूत मशीनरी भी।जो जनांनकीय लाभांश का फायदा उठाने एक कारगर कदम भी साबित होगा। सामाजिक स्तर में सुधार लाने के लिए 50% सीमा को खत्म करने की बात पिछड़े वर्गों और दलितों आदिवासी के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना , इन समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने का अच्छा कदम होगा जो कि सामाजिक विकास को बढ़ाएगा। गरीबों को साधते हुए 72000 रुपए न्याय योजना और मनरेगा की न्यूनतम मजदूरी 400 रुपए करने की बात घोषणा पत्र प्रारूप में कही। जो देश में उपभोक्ता संस्कृति को बढ़ावा देगा और देश की आर्थिक और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा।साथ ही किसानों की एमएसपी की मांगों को पूरा करने की भी बात की है। यह बात लोगो तक पहुंचाने से कांग्रेस को फायदा पहुंचेगा । लेकिन बात यह है की बात पहुंचे कैसे। इसके लिए कांग्रेस को 3 बातों का ध्यान रखना चाइए। पहला की प्रधानमंत्री पर सीधा वार न करें क्योंकि पीएम किसी भी बात को अपने अनुसार मोड़ने में माहिर है उदाहरण "मैं भी चौकीदार "और "मोदी का परिवार मुहिम"। इसलिए कांग्रेस के नेता केवल अपने घोषणा पत्र में अडिग रहे और जहां जाए सिर्फ इन्हें ही गिनाए। दूसरा अडानी अंबानी क्या कर रहे है इससे गांव में लोगो को मतलब नहीं आप उनके लिए क्या करेंगे उन्हें इससे मतलब है इसलिए ये सोचना जरूरी है कि कांग्रेस जो देना चाहती है वह बताए न कि अंबानी अडानी के बेतुके मुद्दे पर चुनाव लड़े।जिससे ज्यादा बड़ी आबादी को कोई मतलब नहीं। तीसरा यह की पूरे देश को ना साधे जहां जीत की संभावना ज्यादा है या सीधे लड़ाई में है ऐसी सीटों में अपना शत प्रतिशत दे। अपने पूरे नेताओं को यहां उतारे सभा करवाए।अपनी बाते पहुंचाए।साथ ही वरिष्ठ और युवा को साथ लेकर आए। ऐसा करना कांग्रेस को भाजपा को मुद्दे में लाना मजबूर करेगा । और भाजपा को उनके चिरपरिचित तरीको से दूर।
"कुंभ के स्थान में चल रहा सियासी स्नान"
गंगा यमुना का संगम प्रयागराज, भारत के अध्यात्म को पोषित करता है।देश की इस आध्यात्मिक नगरी में 25 मई को लोकसभा चुनाव के मतदान होने है।इस समय प्रयागराज में राजनीतिक पारा आसमान छू रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिवेणी संगम में हाल ही में भाषण में कहा कि "समाजवादी पार्टी और कांग्रेस विकास विरोधी हैं ।दोनों पार्टी को कुंभ से ज्यादा अपने वोट बैंक की चिंता है। " प्रयागराज में कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त सभा आयोजित की गई थी जिसमें इतनी भीड़ जुट गई थी कि भीड़ बैरिकेड तोड़कर भाषण देते अखिलेश यादव तक पहुंच गई ऐसी स्थिति में सुरक्षा की दृष्टि से दोनों नेताओं को बगैर भाषण दिए ही वापस लौटना पड़ा। प्रयागराज ,देश की सबसे हॉट और चर्चित सीटों में से एक रही है।यह सीट राजर्षि के नाम से मशहूर भारत रत्न से सम्मानित पुरुषोत्तम दास टंडन की सीट है, जो इस सीट से पहले सांसद थे। यह देश को लाल बहादुर शास्त्री और वीपी सिंह के रूप में प्रधानमंत्री दे चुकी है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हेमवती नंदन बहुगुणा इस सीट से चुनाव लड़ चुके है।यह सीट देश के सबसे महानतम अभिनेता अमिताभ बच्चन की सीट रही है। साथ ही अपने समय में समाजवादी विचारधारा के कारण छोटे लोहिया के नाम से जाने जाने वाले ज्ञानेश्वर मिश्र तो भाजपा के संस्थापक सदस्य मुरली मनोहर जोशी भी सीट में अपनी सेवा दे चुके है।आज इन ऐतिहासिक व्यक्तियों की सीट में सेवा देने की जिम्मेदारी लेने के लिए कांग्रेस की ओर से उज्जवल रमण सिंह( पूर्व सांसद रेवती रमन सिंह के पुत्र हैं ) , भाजपा के नीरज त्रिपाठी से मुकाबले में हैं।इस बार भाजपा ने रीता लाल बहुगुणा जो मौजूदा सांसद है कि टिकट काटकर नीरज त्रिपाठी को दी है। प्रयागराज की इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभाएं मेजा , करछाना ,इलाहाबाद साउथ , बारा और कोरांव है।जिसमें तीन में भाजपा और एक में समाजवादी पार्टी के विधायक विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं साथ ही एक सीट में अपना दल का विधायक है। ऐसे में भाजपा यहां मजबूत नजर आती है। इलाहाबाद की सीट में 18 लाख मतदाता है।जिनमें से 6 लाख ब्राह्मण और मल्लाह वोट राजनीति की दिशा दशा तय करते हैं अब तक यहां पर उच्च जातियों से ही सांसद चुनते आए हैं ।2 लाख पटेल वर्ग के वोट हैं जो कि भाजपा का समर्थक वर्ग है । इस सीट पर 3 लाख अनुसूचित जाति के वोट हैं जो कि बसपा के कोर वोटर्स माने जाते हैं लेकिन इस बार बसपा के कमजोर होने से यह वोट जिस ओर जाएंगे वहां गणित बदल सकती है। सीट के इतिहास की बात करें तो 2009 में समाजवादी पार्टी के कुंवर रमन सिंह ने 38% के लगभग वोट शेयर लेकर बसपा के अशोक वाजपेई को हराया था।जिनके पास लगभग 31% वोट प्रतिशत था । 2009 में 43.51% लोगों ने वोट डाला था जो कि 2014 में बढ़कर 53.5% तक पहुंचा था जिसने वोट स्विंग में एक बड़ी भूमिका निभाई और 2014 के चुनाव में भाजपा ने +24 प्रतिशत वोट स्विंग प्राप्त कर 2009 के11% वोट शेयर से उठकर 35% के लगभग पहुंच गई ।इसमें समाजवादी पार्टी को लगभग 8% का नुकसान हुआ था और वह दूसरे नंबर पर रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फिर + 20% का वोट स्विंग प्राप्त हुआ और भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर लगभग 55% के आसपास चला गया। इस प्रकार भाजपा पिछले 15 सालों में 11% से बढ़कर 55% वोट शेयर तक पहुंच गई है। जो भाजपा के इस सीट पर मजबूती को दर्शाता है। लेकिन इस बार सपा और कांग्रेस का सम्मिलित वोट बैंक भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करता नजर आ रहा है , क्योंकि सपा के बड़े पटेल नेता कांग्रेस की ओर से खड़े उज्जवल रमण सिंह को भरपूर सहयोग दे रहे है साथ ही बसपा का वोट यदि आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के पास आता है ,तो यह भाजपा के लिए सिर दर्द साबित हो सकता है। राहुल अखिलेश की जनसभा में उमड़ी भीड़ भी जन समर्थन का एक संकेत है।
Write a comment ...