गंगा यमुना का संगम प्रयागराज, भारत के अध्यात्म को पोषित करता है।देश की इस आध्यात्मिक नगरी में 25 मई को लोकसभा चुनाव के मतदान होने है।इस समय प्रयागराज में राजनीतिक पारा आसमान छू रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिवेणी संगम में हाल ही में भाषण में कहा कि "समाजवादी पार्टी और कांग्रेस विकास विरोधी हैं ।दोनों पार्टी को कुंभ से ज्यादा अपने वोट बैंक की चिंता है। " प्रयागराज में कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त सभा आयोजित की गई थी जिसमें इतनी भीड़ जुट गई थी कि भीड़ बैरिकेड तोड़कर भाषण देते अखिलेश यादव तक पहुंच गई ऐसी स्थिति में सुरक्षा की दृष्टि से दोनों नेताओं को बगैर भाषण दिए ही वापस लौटना पड़ा। प्रयागराज ,देश की सबसे हॉट और चर्चित सीटों में से एक रही है।यह सीट राजर्षि के नाम से मशहूर भारत रत्न से सम्मानित पुरुषोत्तम दास टंडन की सीट है, जो इस सीट से पहले सांसद थे। यह देश को लाल बहादुर शास्त्री और वीपी सिंह के रूप में प्रधानमंत्री दे चुकी है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हेमवती नंदन बहुगुणा इस सीट से चुनाव लड़ चुके है।यह सीट देश के सबसे महानतम अभिनेता अमिताभ बच्चन की सीट रही है। साथ ही अपने समय में समाजवादी विचारधारा के कारण छोटे लोहिया के नाम से जाने जाने वाले ज्ञानेश्वर मिश्र तो भाजपा के संस्थापक सदस्य मुरली मनोहर जोशी भी सीट में अपनी सेवा दे चुके है।आज इन ऐतिहासिक व्यक्तियों की सीट में सेवा देने की जिम्मेदारी लेने के लिए कांग्रेस की ओर से उज्जवल रमण सिंह( पूर्व सांसद रेवती रमन सिंह के पुत्र हैं ) , भाजपा के नीरज त्रिपाठी से मुकाबले में हैं।इस बार भाजपा ने रीता लाल बहुगुणा जो मौजूदा सांसद है कि टिकट काटकर नीरज त्रिपाठी को दी है। प्रयागराज की इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभाएं मेजा , करछाना ,इलाहाबाद साउथ , बारा और कोरांव है।जिसमें तीन में भाजपा और एक में समाजवादी पार्टी के विधायक विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं साथ ही एक सीट में अपना दल का विधायक है। ऐसे में भाजपा यहां मजबूत नजर आती है। इलाहाबाद की सीट में 18 लाख मतदाता है।जिनमें से 6 लाख ब्राह्मण और मल्लाह वोट राजनीति की दिशा दशा तय करते हैं अब तक यहां पर उच्च जातियों से ही सांसद चुनते आए हैं ।2 लाख पटेल वर्ग के वोट हैं जो कि भाजपा का समर्थक वर्ग है । इस सीट पर 3 लाख अनुसूचित जाति के वोट हैं जो कि बसपा के कोर वोटर्स माने जाते हैं लेकिन इस बार बसपा के कमजोर होने से यह वोट जिस ओर जाएंगे वहां गणित बदल सकती है। सीट के इतिहास की बात करें तो 2009 में समाजवादी पार्टी के कुंवर रमन सिंह ने 38% के लगभग वोट शेयर लेकर बसपा के अशोक वाजपेई को हराया था।जिनके पास लगभग 31% वोट प्रतिशत था । 2009 में 43.51% लोगों ने वोट डाला था जो कि 2014 में बढ़कर 53.5% तक पहुंचा था जिसने वोट स्विंग में एक बड़ी भूमिका निभाई और 2014 के चुनाव में भाजपा ने +24 प्रतिशत वोट स्विंग प्राप्त कर 2009 के11% वोट शेयर से उठकर 35% के लगभग पहुंच गई ।इसमें समाजवादी पार्टी को लगभग 8% का नुकसान हुआ था और वह दूसरे नंबर पर रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फिर + 20% का वोट स्विंग प्राप्त हुआ और भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर लगभग 55% के आसपास चला गया। इस प्रकार भाजपा पिछले 15 सालों में 11% से बढ़कर 55% वोट शेयर तक पहुंच गई है। जो भाजपा के इस सीट पर मजबूती को दर्शाता है। लेकिन इस बार सपा और कांग्रेस का सम्मिलित वोट बैंक भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करता नजर आ रहा है , क्योंकि सपा के बड़े पटेल नेता कांग्रेस की ओर से खड़े उज्जवल रमण सिंह को भरपूर सहयोग दे रहे है साथ ही बसपा का वोट यदि आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के पास आता है ,तो यह भाजपा के लिए सिर दर्द साबित हो सकता है। राहुल अखिलेश की जनसभा में उमड़ी भीड़ भी जन समर्थन का एक संकेत है।
बड़े प्रदेश की बड़ी सीटों में बड़ी लड़ाई
लोकसभा चुनाव आते ही एक सूबा जो समाचार में बना रहता है ,अक्सर कहा जाता है कि देश में सरकार किसकी बैठेगी यह उत्तर प्रदेश तय करता है।इस चर्चित सूबे की चर्चित सीटों में पांचवे चरण में चुनाव है। राहुल गांधी ने सीट बदल ली है प्रधानमंत्री देने वाली यह सीट क्या राहुल की किस्मत बदलेगी, । स्मृति ईरानी ने अमेठी को अपना घर बना लिया है, क्या यह घर इस बार कायम रह पाएगा। प्रियंका गांधी ने रायबरेली और अमेठी में भावुकता से लोगो को जोड़ने की कोशिश की है क्या यह रणनीति आएगी काम। लखनऊ में राज करने क्या राजनाथ फिर तैयार है। राम मंदिर और हिंदुत्व कितना हावी होगा इन सीटों पर ,क्योंकि राममंदिर बनने के बाद यह फैजाबाद में पहला चुनाव है। महिला पहलवान को लेकर समाचार में रहे बृजभूषण और उन पर लगे आरोप का प्रभाव क्या बेटे को जीत हार पर पड़ेगा। साध्वी निरंजन ज्योति से क्या नाराज है जनता या फिर करवाएगी वापसी । मोहनलालगंज के मंत्री क्या फिर बन पाएंगे मंत्री।यह चरण इन सभी प्रश्नों का जवाब देगा। 20 मई को देश में पांचवे चरण के चुनाव है। इस चरण में 49 लोकसभा सीटों में चुनाव होने हैं। इनमें उत्तरप्रदेश(14), बिहार(05), झारखंड (3) , महाराष्ट्र (13), ओडिशा (05),पश्चिम बंगाल (07), जम्मू काश्मीर( 01) और लद्दाख (01 ) सीटों पर चुनाव होंगे।चुनाव आयोग के अनुसार इस चरण में 695 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। पांचवे चरण की 49 सीटों में से 14 सीटें उत्तरप्रदेश की हैं, जिनमें चुनाव होने है। इन सीटों में लखनऊ , रायबरेली, अमेठी,मोहनलालगंज , कैसरगंज हाई प्रोफाइल सीटें है, जिनकी चर्चा देश के हर गली चौराहे में देखने में मिलती है।लखनऊ में देश के रक्षा मंत्री चुनावी मैदान में है तो रायबरेली से राहुल गांधी , अमेठी से केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी,मोहनलालगंज से केंद्रीय राज्य मंत्री कौशल किशोर और कैसरगंज से बृजभूषण सिंह के बेटे करण भूषण चुनावी रण में है।इनके अलावा उत्तरप्रदेश की फैजाबाद , झांसी , बांदा, कौशांबी , बाराबांकी, फतेहपुर , हमीरपुर, जालौन और गोंडा में चुनाव है। 2019 के चुनाव में इन 14 सीटों में सोनिया गांधी की रायबरेली सीट की सीट को छोड़कर सभी 13 सीटों में भाजपा के सांसद संसद में अपने क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं। 2019 में सपा और बसपा गठबंधन ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था , जिसमें 7 सीटों में सपा और 5 में बसपा ने और 2 सीट में सपा ने कांग्रेस के सामने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे। इस बार माहौल कुछ अलग है।सपा और कांग्रेस इस बार गठबंधन में है। लखनऊ , कैसरगंज झांसी और फैजाबाद को छोड़कर बाकी सीटों में भाजपा के लिए पिछले चुनाव के परिणाम को दोहराने में कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। आइए जानते है,इन सीटों में कौन है, प्रत्याशी । क्या है ,हवा। 1.रायबरेली रायबरेली में इस बार राहुल गांधी का सामना भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह से होना है। कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट गांधी नेहरू परिवार की विरासती सीट है। इस सीट का प्रतिनिधित्व फिरोज गांधी , इंदिरा गांधी , अरुण नेहरू और सोनिया गांधी ने किया है। यह उन भाग्यशाली सीटों में से एक है ,जिस सीट ने देश को प्रधानमंत्री दिया है। 2004 से 2024 तक सोनिया गांधी इस सीट से सांसद रहीं है, लेकिन इस बार राज्यसभा से संसद जाने के कारण वे इस बार रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ रही है। सोनिया गांधी ने एक चुनावी भाषण में कहा, " मैं अपना बेटा आप को सौंप रही हूं,आप लोग इसका ख्याल रखिएगा,राहुल गांधी कभी भी आपको निराश नहीं करेंगे."। जवाब में राहुल गांधी ने कहां, "आज मां ने मुझे विश्वास के साथ रायबरेली की 100 साल की सेवा परंपरा का झंडा सौंपा। मैं इस जिम्मेदारी को गर्व के साथ स्वीकार करता हूं और वादा करें कि मैं अपनी मां के हर शब्द का सम्मान करूंगा।'' हालांकि इस सीट में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2014 और 2019 दोनों में काम हुआ है। जिससे 2019 में जीत का मार्जिन काफी कम रहा है। इस सीट में जातिगत समीकरण यूपी की अन्य सीटों जैसे हावी नहीं है। क्योंकि दोनो पार्टी के अपने कैडर के मजबूत वोट है। 2. अमेठी गांधी परिवार की विरासती सीटों में से एक और सीट है ,अमेठी । यह भी उन्हीं कुछ भाग्यशाली सीटों में से एक है जिसने देश को प्रधानमंत्री दिया। संजय गांधी पहले गांधी परिवार के सदस्य थे जो 1980 से इस सीट से चुन कर आए। उनके देहांत के बाद इस सीट से राजीव गांधी सांसद बने और 1991 तक इसी सीट तक संसद रहे। इसके पश्चात सोनिया गांधी और फिर 2004 से 2019 तक राहुल गांधी ने इस सीट से प्रतिनिधित्व किया। यह सीट अब स्मृति ईरानी के पास है। 2014 में हार के बाद इसे अपना स्वाभिमान बना लेनी वाली स्मृति ईरानी 2019 में राहुल गांधी को 55 हजार वोट से हराकर अपनी ताकत दिखाई। अब वे इस सीट पर मजबूत है,और राहुल गांधी सामने मौजूद नहीं है। इस बार स्मृति का मुकाबला कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा से है। जो यहां के मजबूत कांग्रेस संगठन के आधार माने जाते है। और स्थानीय होने के कारण यहां की जनता से दिल से जुड़े हुए है। यह चुनाव राहुल के 15 बनाम स्मृति के 5 का चुनाव भी माना जा रहा है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लगातार अमेठी को लेकर भाजपा सरकार को निशाना बना रहे है।राहुल का कहना है कि उनके द्वारा लाए गए प्रोजेक्ट को सरकार ने बंद कर दिया है। जिसमें मेगा फूड पार्क, हिंदुस्तान पेपर मिल जैसे प्रोजेक्ट है। प्रियंका गांधी अमेठी में अपना आशियाना जमा कर बैठी है , और लोगो से भावुक अपील कर रही है। जबकि स्मृति ईरानी अपने कामों को लेकर जनता के पास जा रही है। साथ जीत के अनुमान के 19 20 में 20 उनके पक्ष में नजर आ रहा है। हालांकि यहां के वोटर इस बार साइलेंट दिख रहे है, जिसे भांपना मुश्किल हो रहा है। 3. लखनऊ अटल बिहारी बाजपेई, विजया लक्ष्मी पंडित जैसे नेताओं की विरासत यह सीट भी उन भाग्यशाली सीट में से एक है जिसने देश को प्रधानमंत्री दिया है। और वर्तमान में उत्तरप्रदेश की राजधानी की यह सीट ने पिछले 10 साल में भारत को गृह मंत्री और रक्षा मंत्री दिए है। राजनाथ सिंह यहां से 2014 में सांसद चुनकर गृह मंत्री चुने गए और 2019 में सांसद चुनकर रक्षा मंत्री चुने गए। अब राजधानी की सीट से 2024 में तीसरी बार सांसद बनने के लिए वे सपा के रविदास मेहरोत्रे से दो दो हाथ करेंगे। यह सीट भाजपा की इस चरण में सबसे मजबूत सीट तो है । साथ में उत्तरप्रदेश की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक है। 1989 के बाद से लखनऊ भाजपा का अजेय किला बना हुआ है। इस बार भी यहां से किसी और पार्टी की जीत की संभावना ना के बराबर ही दिख रही है। 4. कैसरगंज यह सीट चर्चे में रहने का कारण बृजभूषण सिंह है, जो पिछले एक साल से महिला पहलवान और कुश्ती फेडरेशन के चुनावों के चलते समाचार में बने रहे।इस बार बृज भूषण सिंह की टिकट भाजपा ने उनके बेटे करण भूषण को दी है। क्योंकि बृज भूषण पर कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के मामले में लगे आरोप तय किए है। इन सब केस के बाद भी यह सीट भी भाजपा के लिए सुरक्षित मानी जा रही है। साथ ही यह केस यहां की जनता किए मुद्दा भी नहीं है। बृज भूषण सिंह की इन इलाकों में अच्छी पकड़ है और लोगो का विश्वास उन पर है।कैसरगंज में एक रैली के दौरान बृजभूषण ने कहा है कि "वचन देता हूं कि मैं न तो बूढा हुआ हूं, न रिटायर हुआ हूं। अब तो मैं छुट्टा सांड हो गया हूं, अब तो आपके लिए किसी से भी भिड़ सकता हूं। पहले जितना आपके बीच में रहता था, उससे दोगुना आपके बीच में रहूंगा। आपके सुख दुख में शामिल होऊंगा और दोगुनी ताकत के साथ काम करूंगा। " समाजवादी पार्टी ने यहां से भगतराम मिश्र को उम्मीदवार बनाया है।वो भी सियासी परिवार से आते हैं। साथ ही ब्राह्मण है ,जिनका असर इस सीट पर अच्छा खासा माना जाता है। 5. मोहनलाल गंज अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित उत्तरप्रदेश के लखनऊ ग्रामीण की इस सीट से केंद्रीय राज्य मंत्री कौशल किशोर सांसद है। ये पहले बीएसपी और कांग्रेस के चिन्हों से भी चुनाव लड़े हुए है।जिनके सामने समाजवादी पार्टी ने आर के चौधरी को टिकट दिया है। यह सीट इस बार थोड़ी फंसी नजर आ रही है। आर के चौधरी के समर्थन में अखिलेश और डिंपल ने चुनावी जनसभा की है। यहां आने वाली 5 विधानसभा सीट अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित है। जिनमें आर के चौधरी की अच्छी पैठ है। साथ ही रिपोर्ट आ रही है कि इस बार सवर्ण वोट कौशल किशोर से नाराज है। साथ ही आरक्षित सीट होने के कारण राहुल गांधी के आरक्षण विरोधी मुद्दा उठाने के कारण इस सीट में यह एक मुुद्दा बना हुआ है। और इसके पहले यह सीट सपा का गढ़ भी रही है। पिछले बार कौशल कुमार का जीतने का कारण मोदी लहर माना जाता है। तो यह एक सीट है जहां दोनो पार्टी के जीतने के अवसर बराबर है। अब वोटर किस करवट बैठेगा यह 04 जून को स्पष्ट होगा। 6. फतेहपुर एक और भाग्यशाली सीट जिसने भारत को प्रधानमंत्री दिया । वीपी सिंह कांग्रेस को पटखनी दे यहां से सांसद बने और फिर यहां से सांसद रहते देश के प्रधानमंत्री।यह सीट में वर्तमान सांसद साध्वी निरंजन ज्योति केंद्रीय राज्य मंत्री है। इस बार लगातार तीसरी बार सांसद बनने भाजपा की ओर से मैदान में है। जिसके लिए उन्हें सपा के नरेश उत्तम पटेल और बसपा के मनीष मचान से पार पाना होगा। इस सीट से आ रहीं ग्राउंड रिपोर्ट की माने तो जनता साध्वी निरंजन ज्योति से काफी निराश है। साथ ही एंटी इनकंबेंसी का सामना भाजपा को यहां करना पड़ रहा है।इसलिए इस सीट पर भाजपा मोदी योगी के नाम पर जीत चाह रही है। सीट को कुर्मी और मुस्लिम वोटर्स निर्णायक बनाते है। जिसे देखते हुए सपा ने पटेल उम्मीदवार दिया है। साथ ही इस सीट पर सपा का उम्मीदवार ही स्थानीय है जिसका फायदा सपा को मिलने की उम्मीद है। 7. फैजाबाद भाजपा के लल्लू सिंह दो बार से यहां के सांसद है , और तीसरी बार मैदान में है इस आशा के साथ की इस बार भी सांसद बन कर फैजाबाद का प्रतिनिधित्व करेंगे।यह सीट इस बार भी भाजपा के लिए सुरक्षित सीट लग रही है। राम मंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा है, जो अभी इस लोकसभा में सभी मुद्दों पर हावी है। लल्लू सिंह का सामना सपा के अवधेश प्रताप सिंह कर रहे है, जो दलित समाज से आते है। और जातिगत समीकरण साधने के लिए सपा ने लड़ाई में उतारा है।जो की 16% है।साथ ही अवधेश 7% मुस्लिम वोटर्स को अपनी ओर खींचने में सक्षम है।लेकिन जीत के लिए ओबीसी का वोट बैंक शिफ्ट होना जरूरी है। हालांकि पिछली बार लल्लू सिंह महज 66 हजार वोटों से जीते थे। लेकिन इस बार राम मंदिर निर्माण उनकी मुश्किल राह को आसान बना सकता है। 8.झांसी भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीटों में से एक सीट झांसी है।यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है 2014 में उमा भारती इस सीट से जीतकर संसद पहुंच चुकी है। यहां भाजपा के अनुराग शर्मा का सामना पूर्व कांग्रेस सांसद प्रदीप जैन से है। अनुराग शर्मा ने पिछली बार सपा बसपा के गठबंधन को 3 लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। हालांकि यूपी में कांग्रेस का जिन गिनी चुनी जगहों में अस्तित्व बचा है उनमें से एक झांसी है जहां आपको कार्यकर्ता दिख सकते है। इस लोकसभा के अंतर्गत आने वाली सभी सीटों में एनडीए के विधायक प्रतिनिधि है।इस लिए इस किले को सेंध लगाना विपक्ष के लिए मुश्किल होगा। हाल ही में झांसी में अखिलेश राहुल गांधी की रैली में राहुल का भाषण सुर्खियां खींच रहा है।जब उन्होंने झांसी स्मार्ट सिटी को लेकर भाजपा सरकार के प्रति तंज कसा। लेकिन इतना नाकाफी है। 9. बांदा उत्तर प्रदेश की एक सीट जहां बसपा मजबूती से लड़ती दिखाई दे रही है तो वह बांदा सीट है ।ब्राह्मण और पटेल बाहुल्य इन सीटों पर इन दोनो वर्गो का ही वर्चस्व दिखता है।अब तक इस सीट से सात बार ब्राह्मण तो पांच बार पटेल सांसद रहे है।यहां पर भाजपा आर. के पटेल और समाजवादी पार्टी ने शिव शंकर पटेल को को टिकट दिया दिया है जिससे दोनों पार्टी में वोट पटेल वोट बंट सकते है।जिसका फायदा बसपा उठा सकती है जिसने मयंक द्विवेदी एक ब्राह्मण चेहरा उतारा है। इस सीट में सांसद आर के पटेल का जनता के बीच ना आना उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है। हाल ही में हुई अमित शाह की रैली में शाह राम मंदिर के नाम पर वोट मांगते नजर आए। इस लोकसभा सीट पर चित्रकूट के वोटर्स का झुकाव ही चुनाव नतीजे प्रभावित करते आया है।1989 के बाद से 7 सांसद इसी जनपद से आते है। 10. कौशांबी इतिहास के पन्नों में विशेष स्थान रखने वाला कौशांबी अब राजनीतिक सरगर्मी की भूमि बन गया है। उत्तरप्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य की विधानसभा सीट इस लोकसभा सीट में ही आती है ऐसे में इस सीट को बचाना उनके शक्ति को भी दर्शाएगा। इस सीट में भाजपा के सांसद विनोद सोनकर है। जो लगातार 2 बार से सांसद है। लेकिन इस बार उनकी कुछ निजी वीडियो वायरल होने और एंटी इनकंबेंसी के कारण स्तिथि थोड़ी कमजोर लग रही है। इस स्तिथि में उनका सामना राजनीतिक पदार्पण कर रहे पुष्पेंद्र सरोज से है।जो लंदन से पढ़ाई कर आए है। यह एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट में से एक है।इसलिए राहुल गांधी के द्वारा आरक्षण मुद्दा इस सीट पर हावी है। तो भाजपा हिंदुत्व और राम मंदिर के साथ साथ योगी मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है। 11. बाराबांकी कभी कोई को गढ़ न बनाने देने वाली यह सीट आरक्षित है।कांग्रेस यूपी में कहीं मजबूत दिख रही है राय बरेली के बाद तो यह सीट है। यह सीट में कांग्रेस से तनुज पुनिया चुनाव लड़ रहे है। जो पी.एल. पुनिया के पुत्र है। यह सीट में भाजपा की राजरानी रावत चुनाव मैदान में है। वर्तमान सांसद उपेंद्र रावत निजी वीडियो के वायरल होने के कारण स्वयं को उम्मीदवारी से दूर कर लिया है। 12. हमीरपुर इस सीट में भाजपा के पुष्पेंद्र चंदेल 2 बार से सांसद है।और तीसरी बार फिर मैदान में है।समाजवादी पार्टी ने यहां अजेंद्र सिंह और बसपा ने निर्दोष कुमार को यहां उतारा है।ये तीनों उम्मीदवार महोबा क्षेत्र से संबंध रखते है। जातिगत समीकरण इस सीट पर हावी है।लोधी वोट साधने सपा ने लोधी उम्मीदवार मैदान में उतारा है।तो वहीं बसपा ने निर्दोष कुमार दीक्षित को। इस सीट पर केशव मौर्य से लेकर मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री मोहन यादव सभा कर चुके है।लेकिन विपक्ष के बड़े नेता नदारद रहे है। 13.जालौन अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट में भानु प्रताप वर्मा पांच बार भाजपा से सांसद रह चुके हैं लेकिन इस बार एंटी इनकंबेंसी से जूझ रहे हैं और भाजपा इस सीट पर योगी मोदी के चेहरे तथा हिंदुत्व और राम मंदिर पर वोट मांगती नजर आ रही है। इस सीट पर सपा के नारायण दास जिन्होंने बहुजन समाजवादी पार्टी को छोड़कर सपा का दामन था चुनावी मैदान पर हैं। और भानु प्रताप वर्मा को कड़ी टक्कर देते हुए नजर आ रहे हैं।हालांकि पिछली बार इस सीट पर बसपा का वोट प्रतिशत 2014 से 19 के मुकाबले 14% बढ़ा है। 14. गोंडा सीट कीर्ति वर्धन सिंह वर्तमान में गोंडा सीट से सांसद हैं 2014 और 2019 में लगातार दो बार वे भाजपा की टिकट पर जीत दर्ज करते आ रहे है। इस बार भी वे भाजपा की ओर से चुनावी मैदान पर है और अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।इस बार उनके सामने समाजवादी पार्टी ने श्रेया वर्मा को टिकट दिया है जो पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की पोती हैं श्रेया का यह पहला चुनाव है । यह सीट ब्राह्मण, ओबीसी और कुर्मी बाहुल्य सीट है जहां पर यदि ओबीसी वोट छिटका तो उसका फायदा समाजवादी पार्टी को होता दिख रहा है।
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