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प्रधानमंत्री कृषि सम्मान निधि: एक कदम परिवर्तन की ओर।




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गंगा यमुना का संगम प्रयागराज, भारत के अध्यात्म को पोषित करता है।देश की इस आध्यात्मिक नगरी में 25 मई को लोकसभा चुनाव के मतदान होने है।इस समय प्रयागराज में राजनीतिक पारा आसमान छू रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिवेणी संगम में हाल ही में भाषण में कहा कि "समाजवादी पार्टी और कांग्रेस विकास विरोधी हैं ।दोनों पार्टी को कुंभ से ज्यादा अपने वोट बैंक की चिंता है। " प्रयागराज में कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त सभा आयोजित की गई थी जिसमें इतनी भीड़ जुट गई थी कि भीड़ बैरिकेड तोड़कर भाषण देते अखिलेश यादव तक पहुंच गई ऐसी स्थिति में सुरक्षा की दृष्टि से दोनों नेताओं को बगैर भाषण दिए ही वापस लौटना पड़ा। प्रयागराज ,देश की सबसे हॉट और चर्चित सीटों में से एक रही है।यह सीट राजर्षि के नाम से मशहूर भारत रत्न से सम्मानित पुरुषोत्तम दास टंडन की सीट है, जो इस सीट से पहले सांसद थे। यह देश को लाल बहादुर शास्त्री और वीपी सिंह के रूप में प्रधानमंत्री दे चुकी है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हेमवती नंदन बहुगुणा इस सीट से चुनाव लड़ चुके है।यह सीट देश के सबसे महानतम अभिनेता अमिताभ बच्चन की सीट रही है। साथ ही अपने समय में समाजवादी विचारधारा के कारण छोटे लोहिया के नाम से जाने जाने वाले ज्ञानेश्वर मिश्र तो भाजपा के संस्थापक सदस्य मुरली मनोहर जोशी भी सीट में अपनी सेवा दे चुके है।आज इन ऐतिहासिक व्यक्तियों की सीट में सेवा देने की जिम्मेदारी लेने के लिए कांग्रेस की ओर से उज्जवल रमण सिंह( पूर्व सांसद रेवती रमन सिंह के पुत्र हैं ) , भाजपा के नीरज त्रिपाठी से मुकाबले में हैं।इस बार भाजपा ने रीता लाल बहुगुणा जो मौजूदा सांसद है कि टिकट काटकर नीरज त्रिपाठी को दी है। प्रयागराज की इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभाएं मेजा , करछाना ,इलाहाबाद साउथ , बारा और कोरांव है।जिसमें तीन में भाजपा और एक में समाजवादी पार्टी के विधायक विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं साथ ही एक सीट में अपना दल का विधायक है। ऐसे में भाजपा यहां मजबूत नजर आती है। इलाहाबाद की सीट में 18 लाख मतदाता है।जिनमें से 6 लाख ब्राह्मण और मल्लाह वोट राजनीति की दिशा दशा तय करते हैं अब तक यहां पर उच्च जातियों से ही सांसद चुनते आए हैं ।2 लाख पटेल वर्ग के वोट हैं जो कि भाजपा का समर्थक वर्ग है । इस सीट पर 3 लाख अनुसूचित जाति के वोट हैं जो कि बसपा के कोर वोटर्स माने जाते हैं लेकिन इस बार बसपा के कमजोर होने से यह वोट जिस ओर जाएंगे वहां गणित बदल सकती है। सीट के इतिहास की बात करें तो 2009 में समाजवादी पार्टी के कुंवर रमन सिंह ने 38% के लगभग वोट शेयर लेकर बसपा के अशोक वाजपेई को हराया था।जिनके पास लगभग 31% वोट प्रतिशत था । 2009 में 43.51% लोगों ने वोट डाला था जो कि 2014 में बढ़कर 53.5% तक पहुंचा था जिसने वोट स्विंग में एक बड़ी भूमिका निभाई और 2014 के चुनाव में भाजपा ने +24 प्रतिशत वोट स्विंग प्राप्त कर 2009 के11% वोट शेयर से उठकर 35% के लगभग पहुंच गई ।इसमें समाजवादी पार्टी को लगभग 8% का नुकसान हुआ था और वह दूसरे नंबर पर रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फिर + 20% का वोट स्विंग प्राप्त हुआ और भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर लगभग 55% के आसपास चला गया। इस प्रकार भाजपा पिछले 15 सालों में 11% से बढ़कर 55% वोट शेयर तक पहुंच गई है। जो भाजपा के इस सीट पर मजबूती को दर्शाता है। लेकिन इस बार सपा और कांग्रेस का सम्मिलित वोट बैंक भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करता नजर आ रहा है , क्योंकि सपा के बड़े पटेल नेता कांग्रेस की ओर से खड़े उज्जवल रमण सिंह को भरपूर सहयोग दे रहे है साथ ही बसपा का वोट यदि आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के पास आता है ,तो यह भाजपा के लिए सिर दर्द साबित हो सकता है। राहुल अखिलेश की जनसभा में उमड़ी भीड़ भी जन समर्थन का एक संकेत है।



लोकसभा चुनाव आते ही एक सूबा जो समाचार में बना रहता है ,अक्सर कहा जाता है कि देश में सरकार किसकी बैठेगी यह उत्तर प्रदेश तय करता है।इस चर्चित सूबे की चर्चित सीटों में पांचवे चरण में चुनाव है। राहुल गांधी ने सीट बदल ली है प्रधानमंत्री देने वाली यह सीट क्या राहुल की किस्मत बदलेगी, । स्मृति ईरानी ने अमेठी को अपना घर बना लिया है, क्या यह घर इस बार कायम रह पाएगा। प्रियंका गांधी ने रायबरेली और अमेठी में भावुकता से लोगो को जोड़ने की कोशिश की है क्या यह रणनीति आएगी काम। लखनऊ में राज करने क्या राजनाथ फिर तैयार है। राम मंदिर और हिंदुत्व कितना हावी होगा इन सीटों पर ,क्योंकि राममंदिर बनने के बाद यह फैजाबाद में पहला चुनाव है। महिला पहलवान को लेकर समाचार में रहे बृजभूषण और उन पर लगे आरोप का प्रभाव क्या बेटे को जीत हार पर पड़ेगा। साध्वी निरंजन ज्योति से क्या नाराज है जनता या फिर करवाएगी वापसी । मोहनलालगंज के मंत्री क्या फिर बन पाएंगे मंत्री।यह चरण इन सभी प्रश्नों का जवाब देगा। 20 मई को देश में पांचवे चरण के चुनाव है। इस चरण में 49 लोकसभा सीटों में चुनाव होने हैं। इनमें उत्तरप्रदेश(14), बिहार(05), झारखंड (3) , महाराष्ट्र (13), ओडिशा (05),पश्चिम बंगाल (07), जम्मू काश्मीर( 01) और लद्दाख (01 ) सीटों पर चुनाव होंगे।चुनाव आयोग के अनुसार इस चरण में 695 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। पांचवे चरण की 49 सीटों में से 14 सीटें उत्तरप्रदेश की हैं, जिनमें चुनाव होने है। इन सीटों में लखनऊ , रायबरेली, अमेठी,मोहनलालगंज , कैसरगंज हाई प्रोफाइल सीटें है, जिनकी चर्चा देश के हर गली चौराहे में देखने में मिलती है।लखनऊ में देश के रक्षा मंत्री चुनावी मैदान में है तो रायबरेली से राहुल गांधी , अमेठी से केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी,मोहनलालगंज से केंद्रीय राज्य मंत्री कौशल किशोर और कैसरगंज से बृजभूषण सिंह के बेटे करण भूषण चुनावी रण में है।इनके अलावा उत्तरप्रदेश की फैजाबाद , झांसी , बांदा, कौशांबी , बाराबांकी, फतेहपुर , हमीरपुर, जालौन और गोंडा में चुनाव है। 2019 के चुनाव में इन 14 सीटों में सोनिया गांधी की रायबरेली सीट की सीट को छोड़कर सभी 13 सीटों में भाजपा के सांसद संसद में अपने क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं। 2019 में सपा और बसपा गठबंधन ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था , जिसमें 7 सीटों में सपा और 5 में बसपा ने और 2 सीट में सपा ने कांग्रेस के सामने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे। इस बार माहौल कुछ अलग है।सपा और कांग्रेस इस बार गठबंधन में है। लखनऊ , कैसरगंज झांसी और फैजाबाद को छोड़कर बाकी सीटों में भाजपा के लिए पिछले चुनाव के परिणाम को दोहराने में कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। आइए जानते है,इन सीटों में कौन है, प्रत्याशी । क्या है ,हवा। 1.रायबरेली रायबरेली में इस बार राहुल गांधी का सामना भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह से होना है। कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट गांधी नेहरू परिवार की विरासती सीट है। इस सीट का प्रतिनिधित्व फिरोज गांधी , इंदिरा गांधी , अरुण नेहरू और सोनिया गांधी ने किया है। यह उन भाग्यशाली सीटों में से एक है ,जिस सीट ने देश को प्रधानमंत्री दिया है। 2004 से 2024 तक सोनिया गांधी इस सीट से सांसद रहीं है, लेकिन इस बार राज्यसभा से संसद जाने के कारण वे इस बार रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ रही है। सोनिया गांधी ने एक चुनावी भाषण में कहा, " मैं अपना बेटा आप को सौंप रही हूं,आप लोग इसका ख्याल रखिएगा,राहुल गांधी कभी भी आपको निराश नहीं करेंगे."। जवाब में राहुल गांधी ने कहां, "आज मां ने मुझे विश्वास के साथ रायबरेली की 100 साल की सेवा परंपरा का झंडा सौंपा। मैं इस जिम्मेदारी को गर्व के साथ स्वीकार करता हूं और वादा करें कि मैं अपनी मां के हर शब्द का सम्मान करूंगा।'' हालांकि इस सीट में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2014 और 2019 दोनों में काम हुआ है। जिससे 2019 में जीत का मार्जिन काफी कम रहा है। इस सीट में जातिगत समीकरण यूपी की अन्य सीटों जैसे हावी नहीं है। क्योंकि दोनो पार्टी के अपने कैडर के मजबूत वोट है। 2. अमेठी गांधी परिवार की विरासती सीटों में से एक और सीट है ,अमेठी । यह भी उन्हीं कुछ भाग्यशाली सीटों में से एक है जिसने देश को प्रधानमंत्री दिया। संजय गांधी पहले गांधी परिवार के सदस्य थे जो 1980 से इस सीट से चुन कर आए। उनके देहांत के बाद इस सीट से राजीव गांधी सांसद बने और 1991 तक इसी सीट तक संसद रहे। इसके पश्चात सोनिया गांधी और फिर 2004 से 2019 तक राहुल गांधी ने इस सीट से प्रतिनिधित्व किया। यह सीट अब स्मृति ईरानी के पास है। 2014 में हार के बाद इसे अपना स्वाभिमान बना लेनी वाली स्मृति ईरानी 2019 में राहुल गांधी को 55 हजार वोट से हराकर अपनी ताकत दिखाई। अब वे इस सीट पर मजबूत है,और राहुल गांधी सामने मौजूद नहीं है। इस बार स्मृति का मुकाबला कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा से है। जो यहां के मजबूत कांग्रेस संगठन के आधार माने जाते है। और स्थानीय होने के कारण यहां की जनता से दिल से जुड़े हुए है। यह चुनाव राहुल के 15 बनाम स्मृति के 5 का चुनाव भी माना जा रहा है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लगातार अमेठी को लेकर भाजपा सरकार को निशाना बना रहे है।राहुल का कहना है कि उनके द्वारा लाए गए प्रोजेक्ट को सरकार ने बंद कर दिया है। जिसमें मेगा फूड पार्क, हिंदुस्तान पेपर मिल जैसे प्रोजेक्ट है। प्रियंका गांधी अमेठी में अपना आशियाना जमा कर बैठी है , और लोगो से भावुक अपील कर रही है। जबकि स्मृति ईरानी अपने कामों को लेकर जनता के पास जा रही है। साथ जीत के अनुमान के 19 20 में 20 उनके पक्ष में नजर आ रहा है। हालांकि यहां के वोटर इस बार साइलेंट दिख रहे है, जिसे भांपना मुश्किल हो रहा है। 3. लखनऊ अटल बिहारी बाजपेई, विजया लक्ष्मी पंडित जैसे नेताओं की विरासत यह सीट भी उन भाग्यशाली सीट में से एक है जिसने देश को प्रधानमंत्री दिया है। और वर्तमान में उत्तरप्रदेश की राजधानी की यह सीट ने पिछले 10 साल में भारत को गृह मंत्री और रक्षा मंत्री दिए है। राजनाथ सिंह यहां से 2014 में सांसद चुनकर गृह मंत्री चुने गए और 2019 में सांसद चुनकर रक्षा मंत्री चुने गए। अब राजधानी की सीट से 2024 में तीसरी बार सांसद बनने के लिए वे सपा के रविदास मेहरोत्रे से दो दो हाथ करेंगे। यह सीट भाजपा की इस चरण में सबसे मजबूत सीट तो है । साथ में उत्तरप्रदेश की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक है। 1989 के बाद से लखनऊ भाजपा का अजेय किला बना हुआ है। इस बार भी यहां से किसी और पार्टी की जीत की संभावना ना के बराबर ही दिख रही है। 4. कैसरगंज यह सीट चर्चे में रहने का कारण बृजभूषण सिंह है, जो पिछले एक साल से महिला पहलवान और कुश्ती फेडरेशन के चुनावों के चलते समाचार में बने रहे।इस बार बृज भूषण सिंह की टिकट भाजपा ने उनके बेटे करण भूषण को दी है। क्योंकि बृज भूषण पर कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के मामले में लगे आरोप तय किए है। इन सब केस के बाद भी यह सीट भी भाजपा के लिए सुरक्षित मानी जा रही है। साथ ही यह केस यहां की जनता किए मुद्दा भी नहीं है। बृज भूषण सिंह की इन इलाकों में अच्छी पकड़ है और लोगो का विश्वास उन पर है।कैसरगंज में एक रैली के दौरान बृजभूषण ने कहा है कि "वचन देता हूं कि मैं न तो बूढा हुआ हूं, न रिटायर हुआ हूं। अब तो मैं छुट्टा सांड हो गया हूं, अब तो आपके लिए किसी से भी भिड़ सकता हूं। पहले जितना आपके बीच में रहता था, उससे दोगुना आपके बीच में रहूंगा। आपके सुख दुख में शामिल होऊंगा और दोगुनी ताकत के साथ काम करूंगा। " समाजवादी पार्टी ने यहां से भगतराम मिश्र को उम्मीदवार बनाया है।वो भी सियासी परिवार से आते हैं। साथ ही ब्राह्मण है ,जिनका असर इस सीट पर अच्छा खासा माना जाता है। 5. मोहनलाल गंज अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित उत्तरप्रदेश के लखनऊ ग्रामीण की इस सीट से केंद्रीय राज्य मंत्री कौशल किशोर सांसद है। ये पहले बीएसपी और कांग्रेस के चिन्हों से भी चुनाव लड़े हुए है।जिनके सामने समाजवादी पार्टी ने आर के चौधरी को टिकट दिया है। यह सीट इस बार थोड़ी फंसी नजर आ रही है। आर के चौधरी के समर्थन में अखिलेश और डिंपल ने चुनावी जनसभा की है। यहां आने वाली 5 विधानसभा सीट अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित है। जिनमें आर के चौधरी की अच्छी पैठ है। साथ ही रिपोर्ट आ रही है कि इस बार सवर्ण वोट कौशल किशोर से नाराज है। साथ ही आरक्षित सीट होने के कारण राहुल गांधी के आरक्षण विरोधी मुद्दा उठाने के कारण इस सीट में यह एक मुुद्दा बना हुआ है। और इसके पहले यह सीट सपा का गढ़ भी रही है। पिछले बार कौशल कुमार का जीतने का कारण मोदी लहर माना जाता है। तो यह एक सीट है जहां दोनो पार्टी के जीतने के अवसर बराबर है। अब वोटर किस करवट बैठेगा यह 04 जून को स्पष्ट होगा। 6. फतेहपुर एक और भाग्यशाली सीट जिसने भारत को प्रधानमंत्री दिया । वीपी सिंह कांग्रेस को पटखनी दे यहां से सांसद बने और फिर यहां से सांसद रहते देश के प्रधानमंत्री।यह सीट में वर्तमान सांसद साध्वी निरंजन ज्योति केंद्रीय राज्य मंत्री है। इस बार लगातार तीसरी बार सांसद बनने भाजपा की ओर से मैदान में है। जिसके लिए उन्हें सपा के नरेश उत्तम पटेल और बसपा के मनीष मचान से पार पाना होगा। इस सीट से आ रहीं ग्राउंड रिपोर्ट की माने तो जनता साध्वी निरंजन ज्योति से काफी निराश है। साथ ही एंटी इनकंबेंसी का सामना भाजपा को यहां करना पड़ रहा है।इसलिए इस सीट पर भाजपा मोदी योगी के नाम पर जीत चाह रही है। सीट को कुर्मी और मुस्लिम वोटर्स निर्णायक बनाते है। जिसे देखते हुए सपा ने पटेल उम्मीदवार दिया है। साथ ही इस सीट पर सपा का उम्मीदवार ही स्थानीय है जिसका फायदा सपा को मिलने की उम्मीद है। 7. फैजाबाद भाजपा के लल्लू सिंह दो बार से यहां के सांसद है , और तीसरी बार मैदान में है इस आशा के साथ की इस बार भी सांसद बन कर फैजाबाद का प्रतिनिधित्व करेंगे।यह सीट इस बार भी भाजपा के लिए सुरक्षित सीट लग रही है। राम मंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा है, जो अभी इस लोकसभा में सभी मुद्दों पर हावी है। लल्लू सिंह का सामना सपा के अवधेश प्रताप सिंह कर रहे है, जो दलित समाज से आते है। और जातिगत समीकरण साधने के लिए सपा ने लड़ाई में उतारा है।जो की 16% है।साथ ही अवधेश 7% मुस्लिम वोटर्स को अपनी ओर खींचने में सक्षम है।लेकिन जीत के लिए ओबीसी का वोट बैंक शिफ्ट होना जरूरी है। हालांकि पिछली बार लल्लू सिंह महज 66 हजार वोटों से जीते थे। लेकिन इस बार राम मंदिर निर्माण उनकी मुश्किल राह को आसान बना सकता है। 8.झांसी भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीटों में से एक सीट झांसी है।यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है 2014 में उमा भारती इस सीट से जीतकर संसद पहुंच चुकी है। यहां भाजपा के अनुराग शर्मा का सामना पूर्व कांग्रेस सांसद प्रदीप जैन से है। अनुराग शर्मा ने पिछली बार सपा बसपा के गठबंधन को 3 लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। हालांकि यूपी में कांग्रेस का जिन गिनी चुनी जगहों में अस्तित्व बचा है उनमें से एक झांसी है जहां आपको कार्यकर्ता दिख सकते है। इस लोकसभा के अंतर्गत आने वाली सभी सीटों में एनडीए के विधायक प्रतिनिधि है।इस लिए इस किले को सेंध लगाना विपक्ष के लिए मुश्किल होगा। हाल ही में झांसी में अखिलेश राहुल गांधी की रैली में राहुल का भाषण सुर्खियां खींच रहा है।जब उन्होंने झांसी स्मार्ट सिटी को लेकर भाजपा सरकार के प्रति तंज कसा। लेकिन इतना नाकाफी है। 9. बांदा उत्तर प्रदेश की एक सीट जहां बसपा मजबूती से लड़ती दिखाई दे रही है तो वह बांदा सीट है ।ब्राह्मण और पटेल बाहुल्य इन सीटों पर इन दोनो वर्गो का ही वर्चस्व दिखता है।अब तक इस सीट से सात बार ब्राह्मण तो पांच बार पटेल सांसद रहे है।यहां पर भाजपा आर. के पटेल और समाजवादी पार्टी ने शिव शंकर पटेल को को टिकट दिया दिया है जिससे दोनों पार्टी में वोट पटेल वोट बंट सकते है।जिसका फायदा बसपा उठा सकती है जिसने मयंक द्विवेदी एक ब्राह्मण चेहरा उतारा है। इस सीट में सांसद आर के पटेल का जनता के बीच ना आना उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है। हाल ही में हुई अमित शाह की रैली में शाह राम मंदिर के नाम पर वोट मांगते नजर आए। इस लोकसभा सीट पर चित्रकूट के वोटर्स का झुकाव ही चुनाव नतीजे प्रभावित करते आया है।1989 के बाद से 7 सांसद इसी जनपद से आते है। 10. कौशांबी इतिहास के पन्नों में विशेष स्थान रखने वाला कौशांबी अब राजनीतिक सरगर्मी की भूमि बन गया है। उत्तरप्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य की विधानसभा सीट इस लोकसभा सीट में ही आती है ऐसे में इस सीट को बचाना उनके शक्ति को भी दर्शाएगा। इस सीट में भाजपा के सांसद विनोद सोनकर है। जो लगातार 2 बार से सांसद है। लेकिन इस बार उनकी कुछ निजी वीडियो वायरल होने और एंटी इनकंबेंसी के कारण स्तिथि थोड़ी कमजोर लग रही है। इस स्तिथि में उनका सामना राजनीतिक पदार्पण कर रहे पुष्पेंद्र सरोज से है।जो लंदन से पढ़ाई कर आए है। यह एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट में से एक है।इसलिए राहुल गांधी के द्वारा आरक्षण मुद्दा इस सीट पर हावी है। तो भाजपा हिंदुत्व और राम मंदिर के साथ साथ योगी मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है। 11. बाराबांकी कभी कोई को गढ़ न बनाने देने वाली यह सीट आरक्षित है।कांग्रेस यूपी में कहीं मजबूत दिख रही है राय बरेली के बाद तो यह सीट है। यह सीट में कांग्रेस से तनुज पुनिया चुनाव लड़ रहे है। जो पी.एल. पुनिया के पुत्र है। यह सीट में भाजपा की राजरानी रावत चुनाव मैदान में है। वर्तमान सांसद उपेंद्र रावत निजी वीडियो के वायरल होने के कारण स्वयं को उम्मीदवारी से दूर कर लिया है। 12. हमीरपुर इस सीट में भाजपा के पुष्पेंद्र चंदेल 2 बार से सांसद है।और तीसरी बार फिर मैदान में है।समाजवादी पार्टी ने यहां अजेंद्र सिंह और बसपा ने निर्दोष कुमार को यहां उतारा है।ये तीनों उम्मीदवार महोबा क्षेत्र से संबंध रखते है। जातिगत समीकरण इस सीट पर हावी है।लोधी वोट साधने सपा ने लोधी उम्मीदवार मैदान में उतारा है।तो वहीं बसपा ने निर्दोष कुमार दीक्षित को। इस सीट पर केशव मौर्य से लेकर मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री मोहन यादव सभा कर चुके है।लेकिन विपक्ष के बड़े नेता नदारद रहे है। 13.जालौन अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट में भानु प्रताप वर्मा पांच बार भाजपा से सांसद रह चुके हैं लेकिन इस बार एंटी इनकंबेंसी से जूझ रहे हैं और भाजपा इस सीट पर योगी मोदी के चेहरे तथा हिंदुत्व और राम मंदिर पर वोट मांगती नजर आ रही है। इस सीट पर सपा के नारायण दास जिन्होंने बहुजन समाजवादी पार्टी को छोड़कर सपा का दामन था चुनावी मैदान पर हैं। और भानु प्रताप वर्मा को कड़ी टक्कर देते हुए नजर आ रहे हैं।हालांकि पिछली बार इस सीट पर बसपा का वोट प्रतिशत 2014 से 19 के मुकाबले 14% बढ़ा है। 14. गोंडा सीट कीर्ति वर्धन सिंह वर्तमान में गोंडा सीट से सांसद हैं 2014 और 2019 में लगातार दो बार वे भाजपा की टिकट पर जीत दर्ज करते आ रहे है। इस बार भी वे भाजपा की ओर से चुनावी मैदान पर है और अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।इस बार उनके सामने समाजवादी पार्टी ने श्रेया वर्मा को टिकट दिया है जो पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की पोती हैं श्रेया का यह पहला चुनाव है । यह सीट ब्राह्मण, ओबीसी और कुर्मी बाहुल्य सीट है जहां पर यदि ओबीसी वोट छिटका तो उसका फायदा समाजवादी पार्टी को होता दिख रहा है।



आईपीएल की एक टीम जिसका सबसे बड़ा फैन बेस है,और साथ ही लॉयल फैन बेस भी। अब तक टीम ने एक भी खिताब नहीं जीता है लेकिन फैंस के दिल जीतने में कभी कमी भी नहीं छोड़ी। यह टीम है आईपीएल की सबसे अदभुत टीम रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरू। इस बार भी आईपीएल में टीम के लिए फैंस गणित लगा रहे है यदि ऐसा होगा तो हम अंदर हो जाएंगे, और नहीं तो बाहर।ये सब फैंस के लिए नया नहीं है, आरसीबी के फैंस साल दर साल ऐसा करते नजर आते रहते है। हालांकि एक समय ऐसा था जब लग रहा था इस बार आईपीएल में सबसे पहले कोई बाहर होगा तो वह रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु होगी ,इसके लिए जरूरत थी केवल एक हार की। लेकिन हम जानते है , बैंगलोर अजब है इस टीम ने आईपीएल में लगातार 6 मैच हारे और ऐसी स्तिथि में एक मैच हारते ही टीम बाहर हों जाती ।लेकिन इस टीम ने गजब कर दिया और वह मैच अब तक नहीं आने दिया और लगातार 5 मैच जीत कर प्लेऑफ पहुंचने की उम्मीदें कायम रखी। अब आरसीबी को प्लेऑफ में पहुंचने के लिए केवल दो काम करने की जरूरत है। पहला तो यह की अपने अंतिम मैच में चेन्नई को हरा दे। और दूसरा यह कि जब हराए तो पहली बैटिंग कर कम से कम 200 रन बना कर 18 रनों से या दूसरी बैटिंग करते हुए 11 गेंद रहते जीत हासिल कर ले। इस बार आरसीबी एकमात्र टीम ऐसी है जिसने लगातार 5 मैच जीते है। साथ ही 2011 में लगातार 7 मैच जीत का अनुभव भी इस टीम के पास है जिसे आरसीबी एक सकारात्मक रूप में देख सकती है। बाकी अपने खेल से लगातार सबको चौंकाने की क्षमता तो है ही आरसीबी के पास।



एक जिंदगी जो सिर्फ जल, जंगल और जमीन चाहती है, उससे ज्यादा किसी भौतिकतावादी वस्तुओं का उन्हें मोह नहीं है| ऐसी आदिवासी जनजाति भारत की आठ प्रतिशत आबादी है। जिनका केंद्रीकरण मुख्यतः भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों तथा पूर्वी राज्यों के भाग में आता है। चाहे विस्थापन हो या किसी बड़े प्रोजेक्ट को लगाना हो या वैश्वीकरण के प्रभाव हो, यदि किसी समुदाय पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है तो वह आदिवासी समुदाय है। उदाहरण आप सरदार सरोवर डेम के लिए हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन से समझ सकते है।अपनी पहचान की रक्षा के लिए ब्रिटिश राज से आज तक इन मुद्दों को लेकर आदिवासी संघर्ष करते नजर आते हैं। भारत में आदिवासियों की राजनीतिक स्थिति को देखें तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के नाम से इन्हें चिन्हित किया गया है। अनुसूचित जनजाति आयोग आदिवासियों के अधिकारों और मसलों को हल करने के लिए बनाया गया है। भारत की राजनीतिक व्यवस्था में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं। पूरे भारत में कुल 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। साथ ही अनुसूची 5 और अनुसूची 6 में प्रशासन की व्यवस्था है। पंचायती राज कानून की तर्ज पर पेसा कानून आदिवासियों के लिए स्थानीय कानून को नजर रखते हुए बनाया गया है। लेकिन आज प्रतिनिधित्व की बात की जाए तो इन आरक्षित सीटों के अलावा बहुत कम या ना के बराबर सीट ही हैं जिनमें आदिवासी उम्मीदवार उतारे जाते हैं यही स्थिति पंचायती राज व्यवस्था में दिखती है जहां यदि आरक्षित सीट न हो तो इन उम्मीदवारों को शायद एक भी सीट न दी जाए इसके पीछे की वजह जातिवाद का वर्चस्व और आर्थिक संकेंद्रण माना जाता है। भारत में इन समुदाय के सांसद विधायक तो चुने जाते हैं लेकिन मंत्रिमंडल के उच्च स्तरों पर उनकी उपस्थिति बिल्कुल नगण्य है| आज भी यह समुदाय अपने प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष करता नजर आता है जिस कारण कुछ चुनिंदा कानून और नीतियों के अलावा इस समुदाय के लिए व्यापक पैमाने पर आजादी के 70 साल बाद भी कोई कार्य नहीं किया गया। आदिवासियों की आर्थिक स्थिति की बात की जाए तो यह समुदाय ऐसी भोगौलिक परिस्थितियों में निवास करते हैं जो पथरीले और पहाड़ी इलाके हैं। ऐसी कठिन परिस्थितियों में वे मुख्य धारा से अलग हो जाते हैं जिससे सड़क और रेल जैसी परिवहन सेवायें इन समुदायों के पास नहीं पहुंच पाती। जिसके कारण उनकी स्थिति अत्यधिक खराब हो जाती है साथ ही यह समुदाय की 70% से अधिक जनसंख्या का जीवन पशुचारण, खेती तथा लघु वन उपज संग्रह से जीवन यापन करता हुआ गुजरता है। इन समुदायों के पास कृषि करने के लिए आवश्यक धन की कमी के कारण यह साहूकारों से उधार लेते हैं और लगातार चंगुल में फसते जाते हैं जो इनकी गरीबी का एक बड़ा कारण है। इसके साथ-साथ यह आदिवासी मजदूरों के रूप में चाय बागानों में बड़ी-बड़ी फैक्ट्री में काम करते पाए जाते हैं। जहां भी यह निम्न स्तर का जीवन यापन करते हैं। इन समुदायों के पिछड़ेपन का कारण शिक्षा की कमी साथ-साथ कौशल की कमी का होना भी है। सामाजिक स्तिथि की बात करें तो ये आज भी सामाजिक संपर्क स्थापित करने में अपने-आप को सहज नहीं पाती हैं। इस कारण ये सामाजिक-सांस्कृतिक अलगाव, भूमि अलगाव, अस्पृश्यता की भावना महसूस करती हैं। इसी के साथ इनमें शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य तथा पोषण संबंधी सुविधाओं से वंचन की स्थिति भी मिलती है। आज भी जनजातीय समुदायों का एक बहुत बड़ा वर्ग निरक्षर है| जिससे ये आम बोलचाल की भाषा को समझ नहीं पाते हैं। सरकार की कौन-कौन सी योजनाएँ इन तबकों के लिये हैं इसकी जानकारी तक इनको नहीं हो पाती है जो इनके सामाजिक रूप से पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है। धार्मिक अलगाव भी जनजातियों की समस्याओं का एक बहुत बड़ा पहलू है। इन जनजातियों के अपने अलग देवी-देवता होते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है समाज में अन्य वर्गों द्वारा इनके प्रति छुआछूत का व्यवहार। अगर हम थोड़ा पीछे जायें तो पाते हैं कि इन जनजातियों को अछूत तथा अनार्य मानकर समाज से बेदखल कर दिया जाता था| सार्वजनिक मंदिरों में प्रवेश तथा पवित्र स्थानों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया जाता था। आज भी इनकी स्थिति ले-देकर यही है। आदिवासी समुदाय की सबसे बड़ी खासियत यह है कि स्त्री पुरुष समानता का पाठ यदि कोई पढ़ा सकता है तो वह यही वर्ग है। जहां के विवाह प्रथा मानवीय है जहां दहेज के प्रति एक तर्क है। ऑनर किलिंग से दूर इस समाज में लिंगानुपात महिलाओं के पक्ष में झुकता नजर आता है। आदिवासियों की सांस्कृतिक स्थिति की बात की जाए तो यह भारतीय संस्कृति भारत का खजाना है। आदिवासियों के तीज त्यौहार, जनजातीय गीत, जनजातीय नृत्य पूर्ण रूप से प्रकृति आधारित होते हैं। वे प्रकृति पूजक होते हैं इस कारण आधुनिक पर्यावरणीय समस्या का समाधान जितना इनके पास है दुनिया में किसी के पास नही है। पशु और पौधे इनके आराध्य होते है। उदाहरण दूल्हा देव। विवाह में गोल गधेड़ो जैसी प्रथा महिलाओं को आजादी देती है अपना वर चुनने की। गोंड, बैगा पेंटिंग और नृत्य आज वैश्विक स्तर पर सराहे जाते है। जीवन के आदर्श में संग्रहण का शब्द न रखने वाले आदिवासी समुदाय प्रतिदिन आमदनी कमायो खाओ के आदर्श में अपना जीवन व्यतीत करते थे लेकिन आज का समाज वैश्वीकरण के कारण उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने में इतना आतुर हो गया की वे न तो मुख्य धारा के हो पा रहे है ना ही खुद के आदर्श की ओर लौट पा रहे है।



भारतीय शास्त्रों में “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमंते देवता” लिखा गया है।लेकिन क्या यह पूजनीय स्वरूप प्राचीन समाज से आज के समाज में देखने मिलता है? यह सवाल महिला की स्तिथि को देखकर हर पल दिमाग में आता है।आज के समय में महिला की आर्थिक स्वावलंबिता, लैंगिक समानता और संविधानिक क़ानूनी अधिकार का अभाव 3 बड़े मुद्दे है। महिलाओं की राजनीतिक स्तिथि को देखे तो संविधान ने अनुच्छेद 14,15,16,19,21,23,24,39,42,47 के तहत अधिकार दिए है।साथ ही देश की संसद में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई क़ानून पारित किए गए है ।लेकिन इन अधिनियम को पास करवाने में महिला के प्रतिनिधित्व को देखें वो केवल 10 प्रतिशत ही रहा है।आज की स्तिथि में महिला का प्रतिनिधित्व संसद में केवल 14% है और देश की सभी विधानसभा का औसत देखें तो महिला प्रतिनिधित्व मात्र 9% है।पंचायती राज्य में 33% आरक्षण संविधान के तहत है जिसे कई राज्यों में बढ़ाकर 50% कर दिया गया है लेकिन वास्तविकता में जब मैदान में इसे देखते है तो यह मुखौटा मात्र नज़र आती है और गाँवों में सरपंच पति जैसी अवधारणा सामने दिखती है यहाँ तक महिला को वोट पति या ससुर के नाम में दिये जाते है और लोग काम के लिए भी उन्हें ही से संपर्क करते है।कई जगहों में ऐसा दिखता है मानो महिला पार्षद और महिला सरपंच मात्र हस्ताक्षर के लिए होती है।ऐसे ही केंद्र और राज्यों में धनबल बाहुबल के बढ़ते प्रयोग ने महिला को राजनीति के खेल में उतरना मुश्किल बना दिया है क्योंकि अमूमन पिछड़े शैक्षिक और आर्थिक स्तर ने महिलाओं को धन संग्रहित करने से रोका है तो बाहर जाने की पाबंदी के कारण वे लोकप्रिय नेता बनने में असमर्थ होती है ऐसे में बड़े राजनीतिक परिवार की बहू बेटी ना हो पाने की स्तिथि में उनका राजनीतिक ऊँचाई में पहँचना कठिन होता है।अब लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के आरक्षण के लिए बिल पारित तो हो गया है लेकिन उसके लागू होने और उसके प्रभाव सामने में काफ़ी वक्त है। महिलाओं की आर्थिक स्तिथि की बात करे तो 49% जनसंख्या का केवल 27% ही वर्कफोर्स में काम कर रही है। समान मज़दूरी अधिनियम 1976 के बाद भी ग्राउंड में यह देखने नहीं मिलता की महिला पुरुष को समान वेतन मिलता हो। पढ़ी लिखी शहरी महिलाओं की बेरोज़गारी दर 15% है।ज़मीनी अधिकार की बात करे तो हिंदू उत्तराधिकर क़ानून होने के बाद भी महिला का पारिवारिक संपत्ति में हिस्सा ना के बराबर है यह भारत के समाज में पितृसत्तात्मक सोच का उदाहरण है कि हम लड़की को दहेज देंगे और लड़के को संपत्ति। भारत की महिला को आर्थिक रूप स्वावलंबी होना सबसे बड़ी समस्या है अच्छी शिक्षा और जॉब होने के बाद भी शादी के बाद पति और उसके परिवार के अनुसार काम करना पड़ता है, बच्चे होने के बाद जॉब छोड़ना पड़ता है। साथ ही रोज़गार में हिस्सा की बात करे तो वे मजदूरी, घर के काम जैसे कम आय के साधन में लगी हुई है। प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी केवल 13% है। इस प्रकार शिक्षा, रोज़गार में पिछड़ने के बाद उनके हिस्से में रसोई का काम ही आता है जो उनकी ज़िंदगी बन जाता है ।यह देश की जीडीपी और महिला के विकास में बड़ा अवरोध है। आज महिला की सामाजिक स्तिथि की बात करे तो दहेज, बलात्कार और पोषण स्तर में एक भयावह स्तिथि देखने मिलती है। आज भारत की 50% से ज़्यादा महिलायें अनेमिया से जूझ रही है मातृत्व मृत्यु दर आज भी लाख में 103 है। महिलाओं के विरुद्ध हर 2 मिनट में 1 अपराध हो रहे है, जिसमे सगे संबंधियों के द्वारा ज्यादा किए जाते है।धार्मिक स्थलों में प्रवेश से लेकर पुजारी के पद तक पितृत्तात्मक सोच के अनुसार ही अपनी आस्था मानती नज़र आती है। शिक्षा की बात की जाये तो आज भी बेटों को बेटी से ज़्यादा वरीयता दी जा रही है इस कारण ही लड़की का स्कूल ड्राप आउट लड़को से कहीं ज़्यादा दिखता है। कम उम्र में शादी महिलाओं के ख़राब स्वास्थ्य का कारण बनती है।इसके साथ ही प्रवासन से होने वाली समस्या का भोग भी महिलाओं को ही भोगना पड़ता है। महिलाओं को सृष्टि का निर्माता कहा जाता है और कला संस्कृति में आवश्यक रचनात्मकता उनके कार्यों में देखी भी जा सकती है। गीत, संगीत ,लोक नाट्य, लोक नृत्य और लोक चित्रकला में महिलायों की भागीदारी व्यापक है। तीज त्योहार में उनके गान, पेंटिंग और नृत्य से परिवार समाज में रौनक़ आती है। घर को आकर्षक दिखना उनकी रचनात्मकता का ही परिणाम होता है। उदाहरण दुर्गा बाई व्योम की गोंड पेंटिंग। मैथिली ठाकुर ,तीजन बाई ,मालिनी अवस्थी, जोधाइया बाई और नेहा राठौर जैसी महिलायें इसकी उदाहरण है, जिन्होंने भारतीय स्थानीय संस्कृति को समाज में पिरोए रखा है। लेकिन आज जब सोशल मीडिया के जमाने में कला का प्रयोग आर्थिक सशक्त होने के लिए किया जा सकता है तब कुछ को छोड़कर डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण महिलायें यहाँ पीछे होती नज़र आती है। हालांकि देश में योजना , कार्यक्रम और कानूनों के जरिए काफी सुधार आए है लेकिन अभी देश , समाज और प्रशासन को समानता तक पहुंच के लिए कई बड़े कार्य करने है।जिसकी दिशा में हम अग्रसर है बस रफ्तार बनाने की आवश्यकता है।



“आर्थिक व्यवस्था ऐसे संकट में पहुंची थी जो स्वतंत्र भारत के समूचे इतिहास में देखने को नहीं मिला था हमारी आर्थिक साख बिल्कुल लुप्त सी हो गई थी।एक दो हफ्तों में हम अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ से होने वाले थे।ऐसी दशा में ऐसा लग रहा था पानी सिर से ऊंचा उठ रहा है, देर के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।इसलिए हमे बड़ी तेजी से कुछ कदम उठाने पड़े और बिगड़ने वाली स्तिथि को हमने रोक लिया।“यह भाषण प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने लाल किले से दिया।वे बात कर रहे थे 1991 में आया संकट की और उसके लिए गए आर्थिक सुधारों की। 1990की दशक की शुरुआत में भारत में एक ऐसा दौर आया।जब भारत की अर्थव्यवस्था बिल्कुल ही खस्ताहाल हो गई थी।आयत में लगातार कमी होती जा रही थी,भारत का चालू खाता बंद होने की कगार में पहुंच गया था, भारत की अर्थवयस्था की कमी के कारण धन का आउटफ्लो हो रहा था जिसके विदेशी भंडार में कमी आ गई थी,भारत को डिफॉल्ट से बचने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा, भारत के पास आयात के भुगतान के लिए विदेशी मुद्रा की समाप्ति हो चुकी थी।साथ ही वैश्विक स्तिथि भी भारत के प्रतिकूल हो चुकी थी क्योंकि खाड़ी देशों में युद्ध की वजह से भारत में तेलों के दाम आसमान छू चुके थे।साथ ही देश की राजनीतिक अस्थिरिता ऐसी थी सरकारों के बनने बिगड़ने का पतझड़ लगा हो। इस समय देश की जीडीपी की वृद्धि दर औसतन 4% की दर से तो प्रति व्यक्ति आय 1.3% की दर से बढ़ रही थी।इस समय भारत सरकार नेहरू जी की फैबीयन समाजवाद की नीति से चल रही थी।जिसे संरक्षणवाद भी कहा जाता था जिसका मतलब देश के उद्योगों को बाहरी प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा।इस समय आयात और औद्योगिकरण सरकार की निगरानी में चल रहे थे।स्टील , ऊर्जा और संचार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में केवल 4 से 5 कंपनी को हो लाइसेंस प्राप्त था।यह समय लाइसेंस राज का कहा जाता है। सरकारी कंपनी लाभ के लिए नहीं बल्कि सामाजिक विकास के लिए कार्य कर रही थी जिसका प्रभाव यह पड़ा की वे ज्यादातर घाटे में रहती जिन्हे उबारने के लिए सरकार को पैसा देना पड़ता इससे सरकार पर वित्तीय बोझ बड़ा । इन स्थितियों में सुधार के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव , वित्त मंत्री मनमोहन सिंह, मुख्य आर्थिक सलाहकार राकेश मोहन ने मिलकर देश की आर्थिक व्यवस्था को पटरी में लाने का काम किया। उनके द्वारा किया गए सुधार एलपीजी सुधार के नाम से जाने जाते है। जिसमें उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण शामिल है। उदारीकरण के लिए उठाए कदम में उन्होंने लाइसेंस राज को बढ़ावा देने वाले एमआरटीपी एक्ट को खत्म कर दिया केवल कुछ क्षेत्रों में ही जैसे खनन, रक्षा जैसे यह मौजूद था।राज्य जो कि पहले आर्थिक लेनदेन का सूत्रधार था और वस्तु सेवा का प्राथमिक प्रदाता था वह अब केवल नियामक की भूमिका में आ गया।इस प्रकार गैर जरूरी नियंत्रणकारी तंत्र को समाप्त कर दिया गया। निजीकरण के लिए गए निर्णयों में सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनी के शेयर बेच दिए गए। विनिवेश किया गया जिसमे 50% से ज्यादा शेयर सरकार के पास रखा बाकी के शेयर निजी क्षेत्रों में वितरित कर दिए गए। लाइसेंस राज खत्म होने से बड़ी कंपनी के एकाधिकार खत्म हुए और स्वतंत्र रूप से लोग अब उद्योग लगाने लगे ।इस प्रकार प्रतिस्पर्धा बढ़ी जिससे वस्तुओ और सेवा के दाम कम हुए। सरकार ने भारत की संरक्षणवाद नीति को समाप्त कर दिया।और भारत के बाजारों को विश्व के लिए खोल दिया। जिसके अंतर्गत विदेशी निवेश 51% तक करने के लिए कोई अनुमति की आवश्यकता नहीं , विदेशी तकनीकों को भारत में प्रयोग करने के लिए पहले अनुमति लेनी पड़ती थी जिसे खत्म कर दिया गया।इनसे विदेशी तकनीक की भारत में आई साथ ही ओद्योगिककरण को भी गति मिली ।इस समय ही भारत को रुपए का 19% अवमूल्यन करना पड़ा।सरकार ने टैरिफ 150% तक कम कर दिया। एक्साइज ड्यूटी में कमी की साथ ही निर्यात कर को खत्म कर दिया ।इस तरह भारत के बाजारों को पूरे विश्व के खोल दिया। इनके साथ साथ बैंकिंग रिफॉर्म भी हुए है । नरसिम्हन कमेटी के गठन के बाद उनकी सिफारिश मानी गई जिसमें एसएलआर को 37.7%से 25% तो सीआरआर के25% से घटाकर 10% कर दिया गया था ।इस प्रकार बैंको भी ज्यादा रीना बांटने के योग्य हुए जिससे देश में धन का प्रवाह बढ़ा और नए उद्योग या ब्यापार खोलने में लोग सहसक्त हुए। इनका नीतियों का प्रभाव यह हुआ की 2000 के दशक में होने वाला क्रेडिट बूम जो कि विकासशील देशों में हुआ था।उसमे भारत एक हब था । दुनिया भर से भारत में वित्त निवेश का आना शुरू हो गया क्योंकि भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था थी साथ ही भारत जनसंख्या के कारण भारत के बड़ा बाजार था।एलपीजी सुधार के कारण ही 2000 से 2008 तक भारत की अर्थव्यस्थ तेजी से बढ़ी जिसमे एफडीआई 1992 से 2003 तक 317% की दर से बढ़ती हुई नजर आती है। इस समय भारत की जीडीपी जो कि 266 बिलियन थी वह आज बढ़कर 5 ट्रिलियन हो गई है।लोग सुधार के बाद से भारत में गरीबी में काफी कमी आई है। 1991 गरीबी का प्रतिशत जो 36% हुआ करता था आज 21% हो गया है। 1991 के समय होने वाला वस्तु और सेवाओं का निर्यात जो कि 7.3% प्रतिशत था वह बढ़कर 2000 में मात्र 10 सालो में 14% हो गया था साथ ही आयात भी 9.9% से बढ़कर 18% हो गया था।इस तरह 10 सालो में व्यापार जो जीडीपी का 17.2% था बडकर जीडीपी का 30% हो गया था। इस समय ही भारत की अर्थव्यवस्था 2007 तक 8% के औसत दर से वृद्धि भी की जो कि लगातार बनी रही 2015 के बाद लिए गए निर्णयों के पहले तक भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर लगातार विश्व में पहले या दूसरे स्थान में बनी रहती थी।इन नीतियों से सरकार का सरकारी और प्रशासनिक व्यय भी काफी कम होता गया है। 1991 में प्रति व्यक्ति आय जो मात्र 11235 रुपए थी बढ़कर 1 लाख से ज्यादा हो गई है। सरकार अब महंगाई नियंत्रण में ध्यान देने लगी है साथ ही 7 से 8% रहने वाला राजकोषीय घाटा को भी नियंत्रित कर 2019 तक 4% के आसपास रखा गया था।भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1991 में 5.8 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2022 में 632.4 बिलियन डॉलर हो गया। एलपीजी सुधारों ने भारत को आईटी का गढ़ बना दिया है आज भारत सॉफ्टवेयर निर्यात में वैश्विक स्तर में अच्छे कदम जमाए हुए है तो वर्किंग प्रोफेशनल भी तैयार कर रहा है। एलपीजी सुधारों ने आर्थिक स्थिति के साथ साथ सामाजिक स्तिथि में भी सुधार किया है। जीवन प्रत्याशा बढ़ी है जिसका कारण मेडिकल क्षेत्र में सुधार है जो कि विदेशी तकनीकों के कारण संभव हो पाया है। इसके साथ साथ शैक्षिक स्तिथि में सुधार आने से साक्षरता दर भी बढ़ी है। आर्थिक सुधारों के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी थे, जैसे कि असमानता में वृद्धि और कुछ उद्योगों को भी नुकसान हुआ, जैसे कि कृषि और लघु उद्योग।साथ ही पर्यावरण संकट भी एक बड़ी समस्या है। भारत में हुई सैलरी बूम, बड़े बड़े आउटलेट ये सभी उदारीकरण की देन है जो 1991 के समय हुए।भारत अब दुनिया की रफ्तार से रफ्तार मिलते चल रहा है और अब हम दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का स्वप्न देख रहे है जो कि संभव हो पाया है इन सुधारों के कारण ही ।



रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के ऊपर आईपीएल के बहुत शुरुआत में ही प्ले ऑफ से बाहर होने का साया मंडरा रहा है टीम अब तक 6 में से 5 मैच हार चुकी है और पॉइंट्स टेबल में अंतिम स्थान में है। आरसीबी के लिए इस सीजन में भी कुछ अच्छा होता नजर नहीं आ रहा है। इस बार भी केवल विराट कोहली का बल्ला ही रन उगल रहा है जो इस समय ऑरेंज कैप पहने मैदान में नजर आते है लेकिन टीम के अन्य खिलाड़ी बैटिंग के समय ड्रेसिंग रूम में नजर आते है और गेंदबाज फेंकी गई गेंदों को ग्राउंड से बाहर देखते। टीम के कप्तान पिछले सीजन जैसा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे है जिससे कमजोर ओपनिंग होने के कारण मध्यक्रम में दवाब बढ़ता है।लेकिन जब मध्यक्रम के नायक मैक्सवेल और कैमरून ग्रीन भी परफॉर्मेंस नहीं दे पाते तो पूरा जिम्मा कोहली के कंधो में आ जाता है जिससे उनका स्ट्राइक रेट कम होता है तो टीम का रन रेट। हालांकि दिनेश कार्तिक और महिपाल लॉमरोर टीम के लिए अच्छा प्रदर्शन करते हुए दिखे है और आरसीबी का एक मैच जीतना भी कार्तिक की बल्लेबाजी के कारण संभव हो पाया है। महिपाल लॉमरोर की अच्छी बल्लेबाजी के बावजूद भी उन्हें ऊपर न खिलाना टीम के मैनेजमेंट पर सवालिया निशान खड़ा करता है। आरसीबी की गेंदबाजी यूनिट इस आईपीएल में बिलकुल ही असहाय नजर आ रही है। टॉपली की कुछ गेंद अच्छे टप्पे में गिरती है लेकिन पूरी नहीं सिराज को कहां प्रयोग करे यह टीम के लिए सिर दर्द बना हुआ है जिससे धारदार गेंदबाज भी अपनी तीक्ष्णता तलाशते दिख रहे है।स्पिन गेंदबाजी तो टीम में नदारद ही दिखती है मयंक डागर इंप्रेस करने में नाकामयाब रहे है साथ ही टीम ने करण शर्मा को अब तक मौका क्यूं नही दिया यह प्रश्न मैनेजमेंट की सोच पर सवाल खड़े करता है। यश दयाल , व्यशक राजकुमार और आकाशदीप को एक नेतृत्व की कमी साफ झलक रही है क्योंकि किसी अनुभव का साथ उन्हें मैदान में दिख नही रहा। ग्लेन मैक्सवेल एक मात्र गेंदबाज है जो ठीक ठाक करते नजर आ रहे है। मैनेजमेंट यदि सही समय में उपयुक्त निर्णय नहीं लेती और टीम के अनुभवी खिलाड़ी यदि अपनी जिम्मेवारी नही लेते तो जल्द ही इस बार सबसे लॉयल फैन बेस वाली टीम शुरुआत में ही अपने फैन को निराश करते नजर आएगी।

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" घरों में सास सम्मान देने लगी है , पति चिंता करने लगा है, ये केवल सम्मान नहीं है , ये हमने महिला का सम्मान बढ़ाने का कार्य किया है।" ये कहना है शिवराज सिंह चौहान का जो मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री है, और जिनके दिमाग की उपज है, लाड़ली बहना योजना।यह योजना विश्व की सबसे बड़ी योजना में से एक है जो सीधे 1.30 करोड़ महिला को लाभान्वित करती है। लाड़ली बहना योजना जो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने 28 जनवरी 2023 को घोषित की। और जिसके रजिस्ट्रेशन महिला दिवस (8 मार्च) 2023 के दिन शुरू हुए। आज यह योजना मध्यप्रदेश की 1.30 करोड़ महिला के जीवन में आमूलचूल बदलाव करती दिखती है। लाड़ली बहना योजना मध्यप्रदेश की 21 वर्ष से 60 वर्ष तक की विवाहित महिलाओ को प्रतिमाह 1250 रुपए देने का प्रावधान करती है। हालांकि योजना को 1000 रुपया प्रति माह से शुरु किया गया था, जिसे रक्षाबंधन के समय शिवराज सरकार ने बढ़ा कर 1250 रुपए कर दिया।साथ ही इस योजना की राशि बढ़ाकर 3000 रुपए तक की जाने की बात भी कही गई है। इस योजना को लाने के पीछे उद्देश्य महिला और बच्चो के स्वास्थ्य ,पोषण और स्वालंबन की स्तिथि में सकारात्मक परिवर्तन लाना है। क्योंकि मध्यप्रदेश में महिला की स्तिथि मानक स्तरों से काफी कम है।NFHS सर्वे 2019 के डाटा के अनुसार मध्यप्रदेश की 23% महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स काफी कम है। 15 से 49 वर्ष की उम्र की 55% महिला एनीमिया से ग्रसित है। मध्यप्रदेश में महिला की रोजगार में भागीदारी ग्रामीण स्तर पर 24% और शहरी स्तर में 14% है। इन सभी स्थिति में सुधार के लिए यह योजना बहुत कारगर साबित हुई है जिसने मध्यप्रदेश की महिलाओं में लगभग एक सालों में पोषण स्तर, महिला स्वावलंबन , स्वरोजगार के लिए लागत , पारिवारिक सम्मान जैसी कई पहलुओं में सुधार ला दिया है। मध्यप्रदेश की महिलाओं से बात करने पर सभी महिलाओं ने अपने अपने जीवन में आए परिवर्तन को साझा किया। जिसमें लगभग हर एक महिला की जिंदगी में आया परिवर्तन दूसरे से अलग होता है, जो यह बतलाता है कि यह योजना कितनी बहुमुखी है। सुषमा जो कि सिंगल मदर है और एक दर्जी के यहां जाकर सिलाई द्वारा अपनी दो बच्ची को पाली है।अब लाड़ली बहना योजना से आए पैसे से खुद की सिलाई मशीन ले ली और खुद का रोजगार शुरू कर दिया। वे बताती है कि धीरे धीरे काम बढ़ा तो उनकी बच्चियों ने भी काम सीख लिया और अब उनके पास 4 मशीन हो गई है। अब जिंदगी में आने वाले पैसा जीवन में संघर्ष को कम किया है, जिससे आत्मविश्वास बढ़ा है।साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा भी। ऐसे ही उषा जी बताती है कि प्रतिमाह मिलने वाला पैसो से वे अपने पति की मेडिकल जरूरत को पूरा करती है। उनके पति कोयला खदान में काम करते थे जिससे उन्हें सांस की बीमारी हो गई । जिसका इलाज महंगा है, इस पैसे से उन्हें काफी मदद मिल जाती है। वे कहती है कि नागपुर में चल रहे इलाज के कारण उनके पति की स्तिथि में काफी सुधार आया है।जिसके लिए आर्थिक मदद इस योजना से मिल जाती है। सोनम जो 5 साल पहले विवाहित हुई बताती है कि उनके पति बाहर काम करते है समय में पैसे न आने के कारण पहले बच्चे के पोषण में काफी कमी रह गई थी। लेकिन जब उनका दूसरा बच्चा हुआ और इस समय लाडली बहन योजना भी शुरू हुई तो वे इस मिलने वाला पैसा अपने बच्चों के लिए फल ,फूल ,दूधऔर सूखे मेवे जैसे पोषक चीज ले आती है। जिससे यह हुआ की पहले बच्चे और दूसरे बच्चे के पोषण स्तर पर उन्हें साफ प्रभाव दिखाई पड़ता है। इसके साथ ही कुछ महिलाएं मिली जो बताती है कि अब वे अपने बच्चों की कोचिंग का खर्च उठा सकती है। दैनिक खर्चे उठाने के लिए घर में होने वाली लड़ाई कम हुई है ,जिससे पारिवारिक सौहार्द्र बढ़ा है।यह सामाजिक विकास में योगदान करता है। इसी बीच मुस्कान ने एक अनोखा फायदा बताया है कि उनकी सास बैगा पेंटिंग बनाने में उस्ताद है साथ ही स्थानीय गीत भी गाती है। इस योजना के पैसे से मुस्कान ने एक अच्छे कैमरा का मोबाइल खरीदा और सास की रील बनाने लगी अब उनकी सास इंस्टाग्राम सेंसेशन है और सोशल मीडिया के जरिए एक अच्छी कमाई करती है। ये प्रभाव बताते है कि महिला सशक्तिकरण का जो रास्ता आर्थिक रूप सशक्त करने से गुजरता है उसमें यह योजना कितनी प्रभावी होगी।एक महिला के आत्मविश्वास से लेकर परिवार में सम्मान जनक स्तिथि ,तो रोजगार के साधन बनाने से लेकर बच्चों और खुद के पोषण, परिवार और खुद की चिकित्सा सुविधा न जाने कितने पहलू इस योजना ने कवर किए है। इस योजना का लाभ लेने के लिए बहुत आसान प्रक्रिया है जिसमें मध्यप्रदेश की स्थानीय महिला को केवल आधार कार्ड, बैंक खाता और समग्र आईडी के जरिए ई केवाईसी के द्वारा रजिस्टर करवा लाभार्थी की पहचान की गई और उनके बैंक खाता में सीधा पैसा पहुंचा दिया गया। इस योजना ने देश भर में महिला केंद्रित एक नई राजनीति की शुरुआत की है। जिसका प्रभाव निश्चित ही महिला के सामाजिक ,राजनीतिक और आर्थिक सशक्तिकरण में पड़ेगा। उदाहरण के लिए मध्यप्रदेश में शुरू हुई इस योजना के बाद भाजपा ने चुनावी जीत के लिए छत्तीसगढ़ में महतारी वंदना योजना के नाम से 15 ,000 रुपए प्रति वर्ष देने की वादा किया जो अब भाजपा सरकार बनने के बाद लागू हो चुकी है जिसका लाभ अब छत्तीसगढ़ की महिलाओं को मिल रहा है ।इसके साथ-साथ दिल्ली सरकार ने भी ऐसी ही एक योजना महिला सम्मान योजना शुरू की जिसमें 18 वर्ष के ऊपर की महिलाओं को ₹1000 दिए जाएंगे। मध्यप्रदेश में लाई गई योजना मध्यप्रदेश सरकार के महिला सशक्तिकरण का एक विजन है जिसकी एक उन्होंने एक श्रृंखला चलाई और योजनाओं के जरिए महिला के आर्थिक बोझ को दूर करते गए। महिला संबंधी योजनाओं की शुरुआत शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री बनने के साथ की। सबसे पहले उनके द्वारा उठाया गया कदम लाड़ली लक्ष्मी योजना थी जिसके अंतर्गत यदि किसी घर में लड़की पैदा होती है तो ₹100000 उसके 18 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद मिलते थे।सरकार की इस योजना ने मध्य प्रदेश में स्त्री पुरुष लिंगानुपात में व्यापक परिवर्तन किया जो पहले 912 था आज बढ़कर 956 हो चुका है । इसके पश्चात उन्होंने एक और योजना आरंभ की मुख्यमंत्री कन्यादान योजना उन्होंने इसके जरिए इस युवतियों की शादी के बाद वित्तीय सहायता के लिए 15000 रुपए दिए जाते है।जिसका प्रभाव यह पड़ा की माता पिता को लड़की के विवाह के लिए पैसे जोड़ने की मजबूरी में कमी आई और वे शिक्षा में खर्च करने लगे। इसके पश्चात मध्यप्रदेश सरकार ने बालिका शिक्षा बढ़ाने के लिए उन्होंने एक योजना शुरू की थी जिस पर गांव की बेटियों को साइकिल मुहैया की जाती थी ताकि वे स्कूल पढ़ने जा सकें।यह स्कूली शिक्षा बढ़ाने का कदम था। और उसके पश्चात उन्होंने एक और योजना लाई जो कि स्नातक शिक्षा में महिला की संख्या बढ़ाने के लिए थी जिसका नाम है "गांव की बेटी योजना"। जिसमें कॉलेज जाने वाली बेटी को ₹500 रुपए प्रति माह दिए जाते है। जिससे स्नातक में युवतियों के प्रवेश में बढ़ोतरी होती है साथ ही उनकी शादी की उम्र भी बढ़ती है।जिसका महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है । साथ-साथ देश विकास में महिलाओं की भागीदारी में इजाफा होता है। शिक्षा के बाद शादी और फिर ससुराल में खुद का खर्चा पूरा करने के लिए, खुद का रोजगार आरंभ करने के लिए और महिला को स्वावलंबी बनाने के लिए सरकार ने एक लाडली बहन योजना शुरू की। इस तरीके से एक गरीब घर की महिला का जन्म से लेकर उनके पूरे जीवनकाल तक पूरा खर्च उठाने का जिम्मा मध्य प्रदेश सरकार ने उठाया है जिसका महिला सशक्तिकरण पर व्यापक प्रभाव पड़ा है और महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है। मध्यप्रदेश सरकार का ये कार्य महिला विकास की पुस्तकी परिभाषा को वास्तव में चरितार्थ करते दिखता है। जो एक महिला के पूरे जीवनकाल के कठिन समय को जो कि संघर्ष का कारण रहा है और समानता के लिए मुद्दा के प्रत्येक पक्ष को योजनाओं के माध्यम से बखूबी साधा गया है।



7,17,25,30 नवंबर को होंगे चुनाव,03 दिसंबर को होगी नतीजों की घोषणा। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने 5 राज्यों के चुनावी कार्यक्रम की घोषणा की।छत्तीसगढ़ में 2 चरणों में चुनाव 7 और 17 नवंबर को वहीं अन्य सभी 4 राज्यों में एक चरण जिनमें मिजोरम में 7 नवंबर, मध्यप्रदेश 17 नवंबर , राजस्थान 25 नवंबर ( संशोधित) ,तेलंगाना 30 नवंबर को चुनाव का आयोजन किया जाएगा और सभी राज्यों के नतीजों की घोषणा 3 दिसंबर को की जाएगी। मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि पांचों राज्यों को मिलाकर कुल 679 सीटों में ,16 करोड़ वोटर्स है जिनमे 8.2 करोड़ पुरुष और 7.8 करोड़ महिला वोटर्स हे, इनमे 60.2 लाख नए वोटर्स जुड़े हैं जो 179356 पोलिंग स्टेशन में वोट डालेंगे इनमे से 621 पोलिंग स्टेशन दिव्यांग द्वारा संचालित होंगे। साथ ही चुनाव आयोग ने 31 अक्टूबर तक सभी राजनीतिक पार्टियों को चुनावी चंदे की जानकारी प्रदान करने की गाइडलाइन भी जारी की है। छत्तीसगढ़ राज्य 90 सीटों के इस राज्य में 10 सीटें अनुसूचित जाति 29 सीटे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है वर्तमान में कांग्रेस यहां 71 सीटों के साथ सरकार में हे जिसके मुखिया भूपेश बघेल है। 3 जनवरी 2024 को वर्तमान विधानसभा का अंतिम दिन होगा । नई विधानसभा चुनाव के लिए 2.3 करोड़ वोटर्स जिनमे महिला वोटर्स का मतबल ज्यादा हे 7 व 17 नवंबर को वोट देने तैयार हैं। मिजोरम 40 सीटों के इस राज्य में 39 सीटें अनुसूचित जनजाति के राज्य के आरक्षित हैं,वर्तमान मुख्यमंत्री जोरामथंगा मिजो नेशनल फ्रंट के है जो 28 सीटों के साथ बहुमत में हे यहां 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 5 और बीजेपी को 1 सीट प्राप्त हुई। 8.5 लाख वोटर्स में महिला वोटर्स की संख्या पुरुष से ज्यादा हे। मध्यप्रदेश 230 विधानसभा सीटों का राज्य दलबदल के कारण चर्चित रहा हे 2018 चुनाव उपरांत 114 सीटे कांग्रेस ने जीती और निर्दलीय एवम सपा के विधायक के सहयोग से सरकार बनाई किंतु यह 1.5 साल ही चल सकी ,आंतरिक मतभेद के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया 22 विधायकों को साथ ले बीजेपी को समर्थन दे दिया,इस प्रकार बीजेपी ने सरकार बनाई वर्तमान में 127 सीटों के साथ बीजेपी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार चला रही हैं वहीं 96 सीटो के साथ कांग्रेस विपक्ष है। 6 जनवरी 2024 को विधानसभा का विघटन होगा इसलिए राज्य में 17 नवंबर को 5.6 करोड़ वोटर्स अपने मत का प्रयोग करते नजर आएंगे। अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीट तो अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटे आरक्षित हैं। राजस्थान 200 सीटों का यह राज्य 25 सालो से हर बार सरकार परिवर्तन करता आया है इस बार 5.25 करोड़ वोटर्स 25 नवंबर को वोट देते नजर आएंगे। वर्तमान में कांग्रेस सरकार 108 सीटों के साथअशोक गहलोत के नेतृत्व में शासन में हे। राज्य की 34 सीटे अनुसूचित जाति और 25 सीटे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। तेलंगाना भारतीय राष्ट्र समिति के सी आर मुख्यमंत्री हैं जो 119 सीटो के इस राज्य में 2018 में 101 सीट के प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। यह राज्य अनुसूचित जाति के लिए 19 तो अनुसूचित जनजाति के लिए 12 सीटे आरक्षित रखता है। राज्य के 3.17 वोटर्स 30 नवंबर को चुनावी बटन दबाने का इंतजार कर रहे हैं। चुनावी तारीखों की घोषणा बाद कुछ जेपी नड्डा व कांग्रेस पार्टी के x (ट्विटर) की पोस्ट कांग्रेस छत्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश,मिजोरम,राजस्थान,तेलंगाना के चुनाव तारीखों की घोषणा हो चुकी हैं। कांग्रेस पर जनता के समर्थन और विश्वास वो बूते हम इन सभी राज्यों में भरी बहुमत से जीत दर्ज करेंगे। ये किसानों,महिला,मजदूरों,युवाओं के अधिकारों की जीत होगी। जेपी नड्डा चुनाव आयोग द्वारा घोषित चुनावो का स्वागत करता हूं। आदरणीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भाजपा भरी बहुमत से सभी राज्यों में सरकार बनाएगी और आगामी 5 वर्षो के लिए जन आकांक्षा की पूर्ति हेतु कटिबद्ध रहेगी।

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कांग्रेस पार्टी जो कभी केंद्र से ज्यादा दिन सत्ता से दूर नहीं रहती थी , आज 10 सालों से सरकार से बाहर है।यह इतिहास में पहली बार हुआ है। लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं को एसी रूम में बैठकर सोशल मीडिया चलाने के अलावा कहीं ज्यादा आप देखेंगे नहीं। या तो ये डर है ,या कंफर्ट जोन है कि कभी न कभी हमारी वापस होगी। हालांकि यह भी हकीकत है कि कांग्रेस को विपक्ष में रहने का अनुभव ज्यादा नहीं है और उससे ज्यादा बड़ी हकीकत ये कि वह यह इसे सीखना भी नहीं चाहती। पिछले 10 सालों में एक भी ऐसा बड़ा आंदोलन या विरोध कांग्रेस की ओर से देखने नहीं मिला जो सत्ता पक्ष की नाक में दम कर दे। इसके दो कारण हो सकते है। एक तो यह कि भाजपा सब अच्छा कर रही है या तो ये की टूटी बिखरी लग रही कांग्रेस के पास जन आंदोलन की ताकत खत्म हो गई। भारत जोड़ो यात्रा के दो चरण अच्छे कदम थे लेकिन न तो ये जन आंदोलन थे , न ही अपने विजन को दिखाते कदम। अब समय लोकसभा का है और अभी भी समय है कि कांग्रेस अपने विजन के चलते कम से कम 100 सीट तक पहुंच सकती है। कांग्रेस ने हाल ही में अपना घोषणा पत्र का प्रारूप जारी किया है।जो की भारत की वर्तमान समस्या का एक बेहतर समाधान है। लेकिन इसे जनता तक कैसे पहुंचाए यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस का घोषणा पत्र प्रतिमाह महिला को 6000 रुपए देने की बात करता है साथ ही केंद्रीय नौकरियों में महिला को 33% आरक्षण देने की। जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में बहुत बड़ा कदम होगा।इससे महिला में स्वरोजगार बढ़ेगा जिससे देश के लघु, छोटे उद्योग भी रफ्तार पकड़ लेंगे। साथ ही महिला स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति में सुधार होगा। विश्व के सबसे युवा देश में युवा को रोजगार देकर भारत को विश्वशक्ति बनाने का कदम भी कांग्रेस का घोषणा पत्र दिखलाता है। जिसमें उन्होंने केंद्र में 30 लाख पदो में भर्ती प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए परीक्षा कैलेंडर बनाने की बात करती है।युवा के लिए यह उनकी जवानी में सरकारी नौकरी के रोडमैप देगा तो सरकार चलाने एक मजबूत मशीनरी भी।जो जनांनकीय लाभांश का फायदा उठाने एक कारगर कदम भी साबित होगा। सामाजिक स्तर में सुधार लाने के लिए 50% सीमा को खत्म करने की बात पिछड़े वर्गों और दलितों आदिवासी के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना , इन समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने का अच्छा कदम होगा जो कि सामाजिक विकास को बढ़ाएगा। गरीबों को साधते हुए 72000 रुपए न्याय योजना और मनरेगा की न्यूनतम मजदूरी 400 रुपए करने की बात घोषणा पत्र प्रारूप में कही। जो देश में उपभोक्ता संस्कृति को बढ़ावा देगा और देश की आर्थिक और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा।साथ ही किसानों की एमएसपी की मांगों को पूरा करने की भी बात की है। यह बात लोगो तक पहुंचाने से कांग्रेस को फायदा पहुंचेगा । लेकिन बात यह है की बात पहुंचे कैसे। इसके लिए कांग्रेस को 3 बातों का ध्यान रखना चाइए। पहला की प्रधानमंत्री पर सीधा वार न करें क्योंकि पीएम किसी भी बात को अपने अनुसार मोड़ने में माहिर है उदाहरण "मैं भी चौकीदार "और "मोदी का परिवार मुहिम"। इसलिए कांग्रेस के नेता केवल अपने घोषणा पत्र में अडिग रहे और जहां जाए सिर्फ इन्हें ही गिनाए। दूसरा अडानी अंबानी क्या कर रहे है इससे गांव में लोगो को मतलब नहीं आप उनके लिए क्या करेंगे उन्हें इससे मतलब है इसलिए ये सोचना जरूरी है कि कांग्रेस जो देना चाहती है वह बताए न कि अंबानी अडानी के बेतुके मुद्दे पर चुनाव लड़े।जिससे ज्यादा बड़ी आबादी को कोई मतलब नहीं। तीसरा यह की पूरे देश को ना साधे जहां जीत की संभावना ज्यादा है या सीधे लड़ाई में है ऐसी सीटों में अपना शत प्रतिशत दे। अपने पूरे नेताओं को यहां उतारे सभा करवाए।अपनी बाते पहुंचाए।साथ ही वरिष्ठ और युवा को साथ लेकर आए। ऐसा करना कांग्रेस को भाजपा को मुद्दे में लाना मजबूर करेगा । और भाजपा को उनके चिरपरिचित तरीको से दूर।



मुंबई इंडियंस ने आईपीएल में आज अपना लगातार तीसरा मैच हारा ।ऐसा लग रहा है मानो मुंबई की टीम रोहित शर्मा के ऊपर कुछ ज्यादा ही निर्भर हो गई है , रोहित का जल्दी आउट हो जाना क्या बल्लेबाजों से सजी मुंबई की टीम को इतना प्रभावित कर देता है कि वे अपना नेचुरल गेम नहीं खेल पाते। मुंबई की टीम बल्लेबाजों से सजी है जो शायद किसी भी आईपीएल की टीम के पास नही है। रोहित ,ईशान किशन जैसे धुंआधार ओपनर , सूर्या तिलक वर्मा और पांड्या जैसा मिडिल ऑर्डर साथ ही टीम डेविड रोमारियो शेफर्ड नबी और ब्रेविस जैसे तेजतर्रार फिनिशर।हालांकि सूर्य इस वक्त नहीं है लेकिन निहाल और नमन धीर जैसे यंगस्टर कही से कम नहीं। लेकिन तीसरे मैच में इनका प्रदर्शन और पहले मैच में लगभग आसान तक लगता रन चेस का न हो पाना मुंबई के टीम मैनेजमेंट और प्लानिंग पर सवाल खड़ा करता है ,इसकी वजह क्या है यह प्रश्न मुंबई के सामने मौजूद है। पिछले आईपीएल में शानदार प्रदर्शन करने वाले निहाल क्यों टीम से बाहर है ? दूसरे मैच में हार्दिक पांड्या का स्ट्राइक रेट मुंबई के सामने सवाल खड़ा करता है ?इतनी अच्छी बैटिंग लाइन अप होने के बाद उनका सही क्रम न उतार पाना भी एक बड़ा सवाल है?उसके साथ ही प्रश्न खड़ा होता है की रोमारियो शेफर्ड जिन्होंने दूसरे मैच की दूसरी पारी में आकर शानदार कैमियो का रोल निभाया वे तीसरे मैच में बल्लेबाजी करने क्यों नहीं उतरे ?डिवाल्ड ब्रेविस को पहले मैच में खिलाकर दूसरे मैच में बाहर बैठाना और फिर तीसरे मैच में वापस ले आना मुंबई की ड्रेसिंग रूम के कंफ्यूजन को दर्शाता है। मुंबई की टीम न केवल बैटिंग में बल्कि बोलिंग में भी अपने खिलाड़ियों को उचित रूप से निखार नहीं पा रही ।जसप्रीत बुमराह हार्दिक पांड्या जैसे अच्छे स्विंग बॉलर होने के बाद भी मफाका को लगातार दो मैचों में शुरुआती ओवर देना कितना उचित है? एक मैच खेलने के बाद लुक वुड क्यों बाहर है? ऐसी क्या गलती कि मोहम्मद नबी जो बैटिंग और बोलिंग डिपार्टमेंट दोनों में अपना लोहा मनवा चुके हैं टीम से बाहर है ? जब रोमारियो शेफर्ड जो बोलिंग बैटिंग दोनों में अपना हाथ आजमा सकते है उन्हें प्लेइंग इलेवन बाहर रखा जा रहा है? क्या मुंबई पहले तीन मैचों के प्रयोग के बाद भी चौथे मैच में पुनः प्रयोग करेगी या अपनी बेस्ट 11 ढूंढ कर आने वाले मैच में वापसी करेगी। यह वही मुंबई की टीम है जिसने पिछले साल जसप्रीत बुमराह के ना होते हुए एक कमजोर बोलिंग लाइनअप से टूर्नामेंट के प्लेऑफ तक पहुंची थी और आज वही मुंबई टीम है जो ऑलराउंडर धुआंधार बल्लेबाज के साथ साथ डेथ ओवर बॉलर बुमराह आकाश मधवाल से सजी हुई है लेकिन अब तक एक भी मैच जीतने में कामयाब नहीं हो पाई । प्रश्न उठता है हार्दिक पांड्या के कप्तानी एटीट्यूड पर उनका एटीट्यूड तीन मैच हारने के बाद भी समझ से परे है छोटी-छोटी गलतियों पर वह मैदान में मिस कर गया जैसे भाव भाव दर्शाते हैं लेकिन उन छोटी-छोटी गलतियों को सुधारने का प्रयास नहीं करते। बोलिंग लाइन अप, बैटिंग लाइन अप को लेकर कप्तानी में साफ कन्फ्यूजन दिख रहा है। यह वही मुंबई की टीम है जिसने 2019 और 2020 के सीजन मात्र 13 खिलाड़ियों का प्रयोग कर जीती थी लेकिन आज टीम के चयन से लेकर हर एक चीज पर प्रश्न चिन्ह उठता हैं। जवाब मुंबई को खोजना होगा और जल्द ही क्योंकि तीन मैच की लगातार हार के बाद प्ले ऑफ क्वालीफाई करना बेहद मुश्किल हो जाता है। हालांकि विश्वास अभी भी कायम है मुंबई ने दो बार ऐसा कर दिखाया है कि जब लगातार पांच मैच और चार मैच हारने के बाद भी टीम ने फाइनल जीता है।

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