“आर्थिक व्यवस्था ऐसे संकट में पहुंची थी जो स्वतंत्र भारत के समूचे इतिहास में देखने को नहीं मिला था हमारी आर्थिक साख बिल्कुल लुप्त सी हो गई थी।एक दो हफ्तों में हम अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ से होने वाले थे।ऐसी दशा में ऐसा लग रहा था पानी सिर से ऊंचा उठ रहा है, देर के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।इसलिए हमे बड़ी तेजी से कुछ कदम उठाने पड़े और बिगड़ने वाली स्तिथि को हमने रोक लिया।“यह भाषण प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने लाल किले से दिया।वे बात कर रहे थे 1991 में आया संकट की और उसके लिए गए आर्थिक सुधारों की। 1990की दशक की शुरुआत में भारत में एक ऐसा दौर आया।जब भारत की अर्थव्यवस्था बिल्कुल ही खस्ताहाल हो गई थी।आयत में लगातार कमी होती जा रही थी,भारत का चालू खाता बंद होने की कगार में पहुंच गया था, भारत की अर्थवयस्था की कमी के कारण धन का आउटफ्लो हो रहा था जिसके विदेशी भंडार में कमी आ गई थी,भारत को डिफॉल्ट से बचने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा, भारत के पास आयात के भुगतान के लिए विदेशी मुद्रा की समाप्ति हो चुकी थी।साथ ही वैश्विक स्तिथि भी भारत के प्रतिकूल हो चुकी थी क्योंकि खाड़ी देशों में युद्ध की वजह से भारत में तेलों के दाम आसमान छू चुके थे।साथ ही देश की राजनीतिक अस्थिरिता ऐसी थी सरकारों के बनने बिगड़ने का पतझड़ लगा हो। इस समय देश की जीडीपी की वृद्धि दर औसतन 4% की दर से तो प्रति व्यक्ति आय 1.3% की दर से बढ़ रही थी।इस समय भारत सरकार नेहरू जी की फैबीयन समाजवाद की नीति से चल रही थी।जिसे संरक्षणवाद भी कहा जाता था जिसका मतलब देश के उद्योगों को बाहरी प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा।इस समय आयात और औद्योगिकरण सरकार की निगरानी में चल रहे थे।स्टील , ऊर्जा और संचार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में केवल 4 से 5 कंपनी को हो लाइसेंस प्राप्त था।यह समय लाइसेंस राज का कहा जाता है। सरकारी कंपनी लाभ के लिए नहीं बल्कि सामाजिक विकास के लिए कार्य कर रही थी जिसका प्रभाव यह पड़ा की वे ज्यादातर घाटे में रहती जिन्हे उबारने के लिए सरकार को पैसा देना पड़ता इससे सरकार पर वित्तीय बोझ बड़ा । इन स्थितियों में सुधार के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव , वित्त मंत्री मनमोहन सिंह, मुख्य आर्थिक सलाहकार राकेश मोहन ने मिलकर देश की आर्थिक व्यवस्था को पटरी में लाने का काम किया। उनके द्वारा किया गए सुधार एलपीजी सुधार के नाम से जाने जाते है। जिसमें उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण शामिल है। उदारीकरण के लिए उठाए कदम में उन्होंने लाइसेंस राज को बढ़ावा देने वाले एमआरटीपी एक्ट को खत्म कर दिया केवल कुछ क्षेत्रों में ही जैसे खनन, रक्षा जैसे यह मौजूद था।राज्य जो कि पहले आर्थिक लेनदेन का सूत्रधार था और वस्तु सेवा का प्राथमिक प्रदाता था वह अब केवल नियामक की भूमिका में आ गया।इस प्रकार गैर जरूरी नियंत्रणकारी तंत्र को समाप्त कर दिया गया। निजीकरण के लिए गए निर्णयों में सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनी के शेयर बेच दिए गए। विनिवेश किया गया जिसमे 50% से ज्यादा शेयर सरकार के पास रखा बाकी के शेयर निजी क्षेत्रों में वितरित कर दिए गए। लाइसेंस राज खत्म होने से बड़ी कंपनी के एकाधिकार खत्म हुए और स्वतंत्र रूप से लोग अब उद्योग लगाने लगे ।इस प्रकार प्रतिस्पर्धा बढ़ी जिससे वस्तुओ और सेवा के दाम कम हुए। सरकार ने भारत की संरक्षणवाद नीति को समाप्त कर दिया।और भारत के बाजारों को विश्व के लिए खोल दिया। जिसके अंतर्गत विदेशी निवेश 51% तक करने के लिए कोई अनुमति की आवश्यकता नहीं , विदेशी तकनीकों को भारत में प्रयोग करने के लिए पहले अनुमति लेनी पड़ती थी जिसे खत्म कर दिया गया।इनसे विदेशी तकनीक की भारत में आई साथ ही ओद्योगिककरण को भी गति मिली ।इस समय ही भारत को रुपए का 19% अवमूल्यन करना पड़ा।सरकार ने टैरिफ 150% तक कम कर दिया। एक्साइज ड्यूटी में कमी की साथ ही निर्यात कर को खत्म कर दिया ।इस तरह भारत के बाजारों को पूरे विश्व के खोल दिया। इनके साथ साथ बैंकिंग रिफॉर्म भी हुए है । नरसिम्हन कमेटी के गठन के बाद उनकी सिफारिश मानी गई जिसमें एसएलआर को 37.7%से 25% तो सीआरआर के25% से घटाकर 10% कर दिया गया था ।इस प्रकार बैंको भी ज्यादा रीना बांटने के योग्य हुए जिससे देश में धन का प्रवाह बढ़ा और नए उद्योग या ब्यापार खोलने में लोग सहसक्त हुए। इनका नीतियों का प्रभाव यह हुआ की 2000 के दशक में होने वाला क्रेडिट बूम जो कि विकासशील देशों में हुआ था।उसमे भारत एक हब था । दुनिया भर से भारत में वित्त निवेश का आना शुरू हो गया क्योंकि भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था थी साथ ही भारत जनसंख्या के कारण भारत के बड़ा बाजार था।एलपीजी सुधार के कारण ही 2000 से 2008 तक भारत की अर्थव्यस्थ तेजी से बढ़ी जिसमे एफडीआई 1992 से 2003 तक 317% की दर से बढ़ती हुई नजर आती है। इस समय भारत की जीडीपी जो कि 266 बिलियन थी वह आज बढ़कर 5 ट्रिलियन हो गई है।लोग सुधार के बाद से भारत में गरीबी में काफी कमी आई है। 1991 गरीबी का प्रतिशत जो 36% हुआ करता था आज 21% हो गया है। 1991 के समय होने वाला वस्तु और सेवाओं का निर्यात जो कि 7.3% प्रतिशत था वह बढ़कर 2000 में मात्र 10 सालो में 14% हो गया था साथ ही आयात भी 9.9% से बढ़कर 18% हो गया था।इस तरह 10 सालो में व्यापार जो जीडीपी का 17.2% था बडकर जीडीपी का 30% हो गया था। इस समय ही भारत की अर्थव्यवस्था 2007 तक 8% के औसत दर से वृद्धि भी की जो कि लगातार बनी रही 2015 के बाद लिए गए निर्णयों के पहले तक भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर लगातार विश्व में पहले या दूसरे स्थान में बनी रहती थी।इन नीतियों से सरकार का सरकारी और प्रशासनिक व्यय भी काफी कम होता गया है। 1991 में प्रति व्यक्ति आय जो मात्र 11235 रुपए थी बढ़कर 1 लाख से ज्यादा हो गई है। सरकार अब महंगाई नियंत्रण में ध्यान देने लगी है साथ ही 7 से 8% रहने वाला राजकोषीय घाटा को भी नियंत्रित कर 2019 तक 4% के आसपास रखा गया था।भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1991 में 5.8 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2022 में 632.4 बिलियन डॉलर हो गया। एलपीजी सुधारों ने भारत को आईटी का गढ़ बना दिया है आज भारत सॉफ्टवेयर निर्यात में वैश्विक स्तर में अच्छे कदम जमाए हुए है तो वर्किंग प्रोफेशनल भी तैयार कर रहा है। एलपीजी सुधारों ने आर्थिक स्थिति के साथ साथ सामाजिक स्तिथि में भी सुधार किया है। जीवन प्रत्याशा बढ़ी है जिसका कारण मेडिकल क्षेत्र में सुधार है जो कि विदेशी तकनीकों के कारण संभव हो पाया है। इसके साथ साथ शैक्षिक स्तिथि में सुधार आने से साक्षरता दर भी बढ़ी है। आर्थिक सुधारों के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी थे, जैसे कि असमानता में वृद्धि और कुछ उद्योगों को भी नुकसान हुआ, जैसे कि कृषि और लघु उद्योग।साथ ही पर्यावरण संकट भी एक बड़ी समस्या है। भारत में हुई सैलरी बूम, बड़े बड़े आउटलेट ये सभी उदारीकरण की देन है जो 1991 के समय हुए।भारत अब दुनिया की रफ्तार से रफ्तार मिलते चल रहा है और अब हम दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का स्वप्न देख रहे है जो कि संभव हो पाया है इन सुधारों के कारण ही ।
"कुंभ के स्थान में चल रहा सियासी स्नान"
गंगा यमुना का संगम प्रयागराज, भारत के अध्यात्म को पोषित करता है।देश की इस आध्यात्मिक नगरी में 25 मई को लोकसभा चुनाव के मतदान होने है।इस समय प्रयागराज में राजनीतिक पारा आसमान छू रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिवेणी संगम में हाल ही में भाषण में कहा कि "समाजवादी पार्टी और कांग्रेस विकास विरोधी हैं ।दोनों पार्टी को कुंभ से ज्यादा अपने वोट बैंक की चिंता है। " प्रयागराज में कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त सभा आयोजित की गई थी जिसमें इतनी भीड़ जुट गई थी कि भीड़ बैरिकेड तोड़कर भाषण देते अखिलेश यादव तक पहुंच गई ऐसी स्थिति में सुरक्षा की दृष्टि से दोनों नेताओं को बगैर भाषण दिए ही वापस लौटना पड़ा। प्रयागराज ,देश की सबसे हॉट और चर्चित सीटों में से एक रही है।यह सीट राजर्षि के नाम से मशहूर भारत रत्न से सम्मानित पुरुषोत्तम दास टंडन की सीट है, जो इस सीट से पहले सांसद थे। यह देश को लाल बहादुर शास्त्री और वीपी सिंह के रूप में प्रधानमंत्री दे चुकी है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हेमवती नंदन बहुगुणा इस सीट से चुनाव लड़ चुके है।यह सीट देश के सबसे महानतम अभिनेता अमिताभ बच्चन की सीट रही है। साथ ही अपने समय में समाजवादी विचारधारा के कारण छोटे लोहिया के नाम से जाने जाने वाले ज्ञानेश्वर मिश्र तो भाजपा के संस्थापक सदस्य मुरली मनोहर जोशी भी सीट में अपनी सेवा दे चुके है।आज इन ऐतिहासिक व्यक्तियों की सीट में सेवा देने की जिम्मेदारी लेने के लिए कांग्रेस की ओर से उज्जवल रमण सिंह( पूर्व सांसद रेवती रमन सिंह के पुत्र हैं ) , भाजपा के नीरज त्रिपाठी से मुकाबले में हैं।इस बार भाजपा ने रीता लाल बहुगुणा जो मौजूदा सांसद है कि टिकट काटकर नीरज त्रिपाठी को दी है। प्रयागराज की इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभाएं मेजा , करछाना ,इलाहाबाद साउथ , बारा और कोरांव है।जिसमें तीन में भाजपा और एक में समाजवादी पार्टी के विधायक विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं साथ ही एक सीट में अपना दल का विधायक है। ऐसे में भाजपा यहां मजबूत नजर आती है। इलाहाबाद की सीट में 18 लाख मतदाता है।जिनमें से 6 लाख ब्राह्मण और मल्लाह वोट राजनीति की दिशा दशा तय करते हैं अब तक यहां पर उच्च जातियों से ही सांसद चुनते आए हैं ।2 लाख पटेल वर्ग के वोट हैं जो कि भाजपा का समर्थक वर्ग है । इस सीट पर 3 लाख अनुसूचित जाति के वोट हैं जो कि बसपा के कोर वोटर्स माने जाते हैं लेकिन इस बार बसपा के कमजोर होने से यह वोट जिस ओर जाएंगे वहां गणित बदल सकती है। सीट के इतिहास की बात करें तो 2009 में समाजवादी पार्टी के कुंवर रमन सिंह ने 38% के लगभग वोट शेयर लेकर बसपा के अशोक वाजपेई को हराया था।जिनके पास लगभग 31% वोट प्रतिशत था । 2009 में 43.51% लोगों ने वोट डाला था जो कि 2014 में बढ़कर 53.5% तक पहुंचा था जिसने वोट स्विंग में एक बड़ी भूमिका निभाई और 2014 के चुनाव में भाजपा ने +24 प्रतिशत वोट स्विंग प्राप्त कर 2009 के11% वोट शेयर से उठकर 35% के लगभग पहुंच गई ।इसमें समाजवादी पार्टी को लगभग 8% का नुकसान हुआ था और वह दूसरे नंबर पर रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फिर + 20% का वोट स्विंग प्राप्त हुआ और भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर लगभग 55% के आसपास चला गया। इस प्रकार भाजपा पिछले 15 सालों में 11% से बढ़कर 55% वोट शेयर तक पहुंच गई है। जो भाजपा के इस सीट पर मजबूती को दर्शाता है। लेकिन इस बार सपा और कांग्रेस का सम्मिलित वोट बैंक भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करता नजर आ रहा है , क्योंकि सपा के बड़े पटेल नेता कांग्रेस की ओर से खड़े उज्जवल रमण सिंह को भरपूर सहयोग दे रहे है साथ ही बसपा का वोट यदि आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के पास आता है ,तो यह भाजपा के लिए सिर दर्द साबित हो सकता है। राहुल अखिलेश की जनसभा में उमड़ी भीड़ भी जन समर्थन का एक संकेत है।
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