किसका मुख्यमंत्री: जनता का या प्रधानमंत्री का?

जनता नही आलाकमान बताएगी मुख्यमंत्री कौन होगा!
तीन राज्यों में विधायक दल के नेता चुने गए वो बात अलग है मतों द्वारा नहीं चिट द्वारा।  विष्णुदेव सहाय छत्तीसगढ़ ,मोहन यादव मध्यप्रदेश और भजन लाल शर्मा राजस्थान को अपने- अपने राज्यों की कमान मिली।


तीनो राज्यों की चुनाव यात्रा देखें तो भाजपा ने किसी चेहरे पर चुनाव नही लड़ा । और एक रणनीति के तहत सांसदों को विधानसभा के चुनाव में उतारा। इन नेताओं की विधानसभा  जीत के बाद जो मंत्री थे उनसे मंत्री पद त्याग करवाए साथ ही सांसदों से सांसद पद।
भाजपा की इस रणनीति से एक अनुमान ये लग रहा था कि ये बड़े कद्दावर नेता भाजपा की जीत पर मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे इसलिए लगभग हर क्षेत्र की जनता अपने लोकप्रिय नेता को वोट दे उनके मुख्यमंत्री बनने का इंतजार करने लगी।
चुनाव नतीजे आए भाजपा ने तीनों राज्यों में बहुमत हासिल किया। अब तीनो राज्यों के बड़े नेता मुख्यमंत्री बनने शतरंजी चाल चलने लगे।


मध्यप्रदेश में चुनाव परिणाम पश्चात् शिवराज ने रैलियां नही रोकी जगह जगह जाकर उनके साथ खड़ी जनशक्ति  आलाकमान को दिखा रहे थे। तो राजस्थान में वसुंधरा राजे और सी पी जोशी अपने साथ खड़े विधायको को हाईकमान को दिखाते नजर आ रहे थे।छत्तीसगढ़ में ऐसा कुछ तो नही हुआ लेकिन रमन सिंह ,अरुण साव, रेणुका सिंह जैसे नेता मुख्यमंत्री बनने की कतार में पहले थे।


लेकिन मोदी शाह की भाजपा कब गंगू तेली को राजा भोज बना दे ये किसी को पता नहीं होता। 10,11,12 दिसंबर यही दिन थे जब विधायक दल की हुई बैठक में तीसरी चौथी पंक्ति में बैठे विधायक मंच में बैठे अपने अपने राज्यों के सबसे बड़े लोकप्रिय नेताओं से आलाकमान की और से आई एक पर्ची में अपना नाम सुन आश्रयचकित हो उठते। जब नाम बाहर आता तो जनता के भी यही हाल होते और उस विधानसभा को छोड़ पूरा राज्य इस सोच पड़ जाता कि कौन है भाई ये हमारे मुख्यमंत्री ,इनका हुलिया क्या है।


खैर मुख्यमंत्री तो विधायक दल का नेता होता है ,जो विधायको द्वारा चुना जाना चाहिए । हालांकि भारत में प्रभावशाली व्यक्तित्व के चेहरे पर भी चुनाव लड़ा जाता है और जनता इस विश्वास से वोट करती है, बटन पार्टी पर नही उस व्यक्ति के नाम पर दबाती है और उम्मीद करती है कि ये हमारे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री होंगे।


लेकिन इन राज्यों में चुने गए मुख्यमंत्री में सिर्फ आलाकमान की एक चिट आई और मुख्यमंत्री चुन लिए गए।ना ये बड़े जननेता थे, ना ही लोकप्रिय और शायद विधायको की राय ली जाती तो ये विधायको का बहुमत भी हासिल नहीं कर पाते ।


एक तरह से ये जनता और पार्टी पर आरोपित मुख्यमंत्री है। इससे कुछ प्रश्न उठते है कि क्या ये मुख्यमंत्री कठपुतली होंगे जिससे केंद्र में बैठे प्रधानमंत्री राज्य अपने हिसाब से चला सके ?राज्य सूची में कानून भी अपने हिसाब से बनवा सके ? क्या यह केंद्र राज्य संबंध में हस्तक्षेप नही होगा?,क्या यह जनता की आकांक्षाओं के साथ खिलवाड़ नहीं है?


सांसदों और केंद्रीय  मंत्रियों को राज्य भेजकर और वहां भी बड़ा पद न देकर अपने   बराबरी में आ सकने वाले नेताओं की राजनीति खत्म करने की  साजिश नही है ।

ये मामले तो पार्टीगत है लेकिन इसका प्रभाव देश की राजनीति में भी व्यापक हो सकता है क्योंकि कोई भी पार्टी केवल एक लोकप्रिय नेता से नही चलती शिवराज का कद  मध्यप्रदेश में और वसुंधरा का कद राजस्थान में वही है जो मोदी का देश में। राज्यों के लोग को पूरा अधिकार है वे अपने लोकप्रिय नेताओं से शासन व्यवस्था चलवाए।

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harshit chourasia

।जान रहे है,खुद को धीरे धीरे, मद्धम मद्धम।