“जिस दिन मेरे नेता (अटल) ने सदन से इस्तीफा दिया उस दिन ही रामराज्य की भूमिका तैयार हो गई थी” – सुषमा स्वराज का यह भाषण आज सच होता दिखता है। छोटा कद, सिल्क की साड़ी, माथे पर बड़ी बिंदी, और हाफ जैकेट में सजी सुषमा जी, जब भाषण देती थीं, तो उनके शब्दों में तीर की तरह तीखापन और मोहिनी की तरह वशीकरण होता था। विरोध में हों या पक्ष में, उनकी बातों का प्रभाव हर किसी पर पड़ता था।
1952 में हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा ने लॉ में स्नातक की पढ़ाई की। समाजवादी विचारों से प्रभावित होकर वे छात्र राजनीति में सक्रिय हुई, आगे वे एबीवीपी से जुड़कर राजनीति करने का मैदान तैयार किया । पहले जार्ज फर्नांडीज स्कूल की राजनीतिज्ञ रूप में और फिर ताउम्र लालकृष्ण आडवाणी के राजनैतिक स्कूल की छात्रा के रूप में उन्होंने राजनीति कर अनेकों माइलस्टोन अर्जित किए। जिनमें सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री, किसी राजनैतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता ,दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री, पहली महिला नेता प्रतिपक्ष और भारत की विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद उनके सफर के कीर्तिमान रहे है।
सुषमा स्वराज के राजनीतिक करियर का श्री गणेश आपातकाल के समय हुआ जब जॉर्ज फर्नांडिस जेल में बंद थे और उन पर बड़ौदा डायनामाइट का केस चल रहा था, उनका यह केस सुषमा लड़ रही थी। इसी समय आपातकाल के बाद चुनाव हुए जिसमे जॉर्ज मुज्जफरपुर से खड़े हुए तब सुषमा ने उनकी पत्नी के साथ जाकर नामांकन भरा और तूफानी चुनाव प्रचार किया उनका एक नारा जो गलियारों में गूंज रहा था “जेल का फाटक टूटेगा, हमारा जॉर्ज छूटेगा।“ इन चुनावी सभाएं ने जॉर्ज को चुनाव जिता दिया और सुषमा बन गई जॉर्ज के आंखो का तारा।
अब बारी थी सुषमा के आधिकारिक राजनीतिक पदार्पण की जो आई हरियाणा के अंबाला से जब वे मात्र 25 वर्ष की उम्र में विधायक बन विधानसभा पहुंची और चंद्रशेखर के निर्देश में हरियाणा में देवीलाल के कैबिनेट में मंत्री बन गई। हालांकि देवीलाल ने पहले उन्हे राज्य मंत्री का दर्जा दिया जिससे नाराज सुषमा ने अपने संरक्षक चंद्रशेखर को ये बात बताई तो चंद्रशेखर ने देवीलाल को फोन घुमा कहा “यदि सुषमा मंत्री नही तो तुम मुख्यमंत्री नहीं “। यह बात इतनी आगे बढ़ी कि चौधरी चरण सिंह तक पहुंच गई फिर उनके आदेश ने देवीलाल को सुषमा को मंत्री बनाने के एलए मजबूर कर दिया।
विधायक से ऊपर उठ सुषमा अब दिल्ली जाने का मन बना चुकी थी लेकिन वही चिरपरिचित कविता से उन्हें भी रूबरू होना पड़ा की “दिल्ली अभी दूर है।“ सुषमा ने लगातार 2 लोकसभा चुनाव हारे। हालांकि इसी दौरान वे जनता पार्टी की हरियाणा की अध्यक्ष और उसके बाद भाजपा की संस्थापक सदस्य बन कर राजनीति के बड़े महाकुंभ में आहुति दे चुकी थी।
कारवां बढ़ा, सुषमा दिल्ली पहुंच गई लेकिन मार्ग था राज्यसभा और उसके पीछे का कारण था भाजपा को अपनी बात संसद द्वारा लोगो तक पहुंचाना। इसके लिए अटल जी के माफिक दूसरा कोई योग्य था तो वह थी सुषमा और इसका साक्षी इतिहास है। चाहे उनका संसद में दिया 11 जून 1996 का भाषण हो या नेता प्रतिपक्ष के रूप में दिया गया फरवरी 2014 का भाषण। लोगो ने उन्हें उनकी बातों को खूब सुना, खूब सराहा और खूब प्यार दिया।
11 जून 1996 को एच.डी. देवेगौड़ा द्वारा लाए गए विश्वास प्रस्ताव के विरोध में दिया गया सुषमा जी का भाषण आज भी लोगो की यादों में रचा बसा है। उन्होंने कहां “मेरे नेता के साथ आज जो घटना हुई वो त्रेता में राम के साथ भी हुई थी और द्वापर में धर्मराज युधिष्ठिर के साथ जब राज्याधिकारी को बाहर निकाला गया। जब एक मंथरा, एक शकुनी उन्हें बाहर कर सकते है तो हमारे खिलाफ तो ना जाने कितनी मंथरा और शकुनि काम. कर रहे है। लेकिन रामराज्य की नियति यही है कि उसे एक बार षडयंत्र का शिकार होना पड़ता है। हमारे रामराज्य की भूमिका तब ही तय हो गई है जब अटल जी ने इस्तीफा दिया।“
इसी भाषण में उन्होंने एक भारतीयता पर कहा कि “जब शिवभक्त अमरनाथ के जल से रामेश्वर के पैर पंखारे, यही भारतीयता है। कश्मीर के राजमा चावल से तमिल का डोसा एक है, पंजाब के भांगड़े से दक्षिण का भरतनाट्यम एक है, यही भारतीयता है।“
इसी भाषण में सुषमा ने सांप्रदायिक सरकार होने के आरोप को नकारते हुए कहा कि “ हाँ हम सांप्रदायिक है क्योंकि हम आर्टिकल 370 की बात करते है , हम यूसीसी पर बात करते है, हम तिरंगे के सम्मान की बात करते है। और कांग्रेस इसलिए धर्म निरपेक्ष है क्योंकि वह सिख दंगे करवाती है औऱ सपा धर्म निरपेक्ष है क्योंकि कार सेवक पर बंदूक चलती है।“ इसी भाषण में उन्होंने कभी राजनीतिक गुरु चंद्रशेखर को घेरा औऱ कहां कि “आप कौरव की सभा में भीष्म पितामह की तरह है।“ साथ ही उन्होंने एक बड़ी बात यह कही कि ”पहले एक समय था जब एक सरकार होती थी और बिखरा हुआ विपक्ष आज एकजुट विपक्ष है और बिखरी हुई सरकार। “ सुषमा के इस भाषण की गूंज आज भी लोकतंत्र के मंदिर संसद से लेकर राजनीति में रुचि लेने वाले लोगो के कानों में गूंजती रहती है।
सुषमा जी का इसके बाद राजनीति का दौर कुछ ऐसा भी आया कि जिस पद के लिए लोग संघर्ष करते थक जाते है लेकिन उन्हें मिल नहीं पाता । वह पद उन्हें एक झटके में मिल गया वो पद था दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद। 1998 में बनी मुख्यमंत्री सुषमा ने दिल्ली मुख्यमंत्री के रूप में प्याज के दाम कम करने के लिए कार्य किया साथ ही सुरक्षा व्यवस्था के लिए उन्होंने कहा कि “मैं जाग रही हूं क्योंकि दिल्ली के नागरिक आसानी से सोए। लेकिन उनके कम समय में किए गए काम ,काम नही आए और भाजपा चुनाव हार गई।“
इसके बाद आया सुषमा और सोनिया का चिरपरिचित बेल्लारी सीट में हुआ लोकतंत्र का दंगल। कांग्रेस सोनिया को कहां से चुनाव लड़ाएंगी यह किसी को पता नहीं था बस हवा में कयास लगाए जा रहे थे कि शायद “ ऊंट इस करवट बैठे “।और एक दिन आया भी ऐसा, जब बाते आंध्र की उड़ाई गई लेकिन जहाज उतारा गया बेल्लारी में और जैसे ही इस बात की भनक लगी भाजपा ने अपनी सबसे फौलादी योद्धा को रात में फोन घुमाया और फोन में सुषमा ने आवाज सुनी कि कल सुबह 6 बजे आपको बेल्लारी जाना है। इसी के साथ महज 4 घंटे की तैयारी में सुषमा सोनिया से वे दो दो हाथ करने बेल्लारी पहुंच गई। वहां उन्होंने कन्नड़ सीख और चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक कर्नाटक को अपना बना लिया हालांकि 56 हजार वोटों के अंतर होने के कारण वे सीट नहीं जीत पाई। लेकिन उन्होंने वहां के लोगों से सालों का रिश्ता बना लिया वे सालों तक वर महालक्ष्मी की पूजा में बेल्लारी जाती रही।
सोनिया सुषमा की दूसरी टकराहट 2004 में सामने आती है जब सुषमा ने कहा था कि यदि कांग्रेस सोनिया को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाती है तो वे सफेद साड़ी धारण कर सिर मुंडवा कर घूमेंगी।
इन घटनाओं के इतर जिम्मेदारी से भरे हुए पदों को उन्होंने बखूबी संभाला।1998 की भाजपा की विजय में सुषमा को अटल की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनी साथ ही एक साल के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा भी उनके कंधों में आया। सुषमा ने 2009 से 2014 तक नेता प्रतिपक्ष का कार्य संभाला जिसमें उनके द्वारा लोकसभा के अंतिम सत्र में दिया गया भाषण को खूब सराहा जाता है जिसमे उन्होंने कहा था कि “यह सदन उलझा भी बहुत सुलझा भी बहुत कमलनाथ जी की शरारत ने इसे उलझाया तो शिंदे जी की शराफत ने इसे सुलझाया। सोनिया जी की मध्यस्थता और प्रधानमंत्री जी कि सौम्यता साथ ही मीरा जी की सहनशीलता और आडवाणी जी की न्यायप्रियता ने सदन चलाया । इस सभा ने लोकपाल, भूमि अधिग्रहण, तेलंगाना और भूमि अधिग्रहण जैसे विधायक पास किए। मैं सब को तो विजय भव का आशीर्वाद नही दे सकती लेकिन यशस्वी भाव का आशीर्वाद जरूर देती हूं।“
पक्ष विपक्ष एकता की बड़ी सूत्रधार ने सदन के बारे में कहा था कि “सदन पथिक की तरह कभी चलता है कभी ठहरता है पुनः चलता है क्युकी उसमे आंतरिक गति ही इतनी है कि वह उलझा नही रह सकता ।सदन के साथ साथ भारत की सामाजिक , राजनीतिक और आर्थिक विकास यात्रा भी चलती रही है।“
शेरो शायरी में जवाब देने से भी वे पीछे नहीं हटती थी उन्होंने एक बार लालू जी को उनके ही अंदाज में जवाब देते हुए कहा था “आपको गांठे खोलना नही आता और मसखरी के अलावा कुछ बोलना नहीं आता।“
सुषमा स्वराज का राजनीति और जिंदगी का नया पड़ाव शुरू हुआ 2014 में जब भाजपा ने सरकार बनाई और प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी। आरएसएस से दूरी और आडवाणी गुट की होने के कारण सुषमा का मंत्रिमंडल में होना मुश्किल लग रहा था। लेकिन यह अंदेशा मात्र रहा और सुषमा को सरकार में सौंपा गया विदेश मंत्री का पद जो उस समय सरकार में नंबर तीन का पद हुआ करता था।
विदेश मंत्री के रूप में किए गए उनके कामों ने उन्हे राजनीतिक जीवन में सर्वाधिक प्रसिद्धि में पहुंचाया। ट्विटर मिनिस्टर के नाम से मशहूर सुषमा ट्विटर के माध्यम से वीजा समस्या सुलझा देती तो कभी एक महिला के पासपोर्ट बनवाने के लिए दिन रात एक कर देती ।तो कभी पाकिस्तान जेल से छूट कर आए व्यक्ति को हमदर्दी से गले लगा लेती तो कभी दिव्यांग गीता के परिजनों को ढूंढने के लिए ऑफिसर को दौड़ा देती।सूडान इराक जैसे देशी में फंसे भारतीय लोगो को वहां से निकलवाने के लिए उठाए उनके कदमो में उनके यह ममत्व भाव को देख वॉशिंगटन पोस्ट ने उनके लिए लिखा था “सुपरमॉम ऑफ इंडिया”।
इस सुपरमॉम के तीखे तेवर भी देखने को मिले जब यू. एन. असेंबली में पाकिस्तान घेरते हुए उन्होंने कहा कि “पाकिस्तान हमें कह रहा है कि हम मानवाधिकार का उल्लंघन कर रहे है, हम राज्य केंद्रित आतंकवाद फैला रहे है। जो मुल्क खुद हैवानियत की हद पार कर सैकड़ों को मौत के घाट उतारे वह हमे अब मानवता का पाठ पढ़ाएगा।
कहा जाता है कि जब प्रधानमंत्री मोदी अफगानिस्तान से लौट कर अचानक पाकिस्तान उतर गए तो इसके पीछे की नीति सुषमा जी की थी। माल्टा में जब नवाज शरीफ के परिवार से वे मिली थी नवाज की मां से भी उनकी मुलाकात हुई तब नवाज की मां ने उनसे कहा था कि” बेटा तू मेरे मुल्क से आई है वादा कर दोनो मुल्क के रिश्ते सुधार कर जाएगी।“
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री सरताज के उन्हे याद करते हुए कहते है कि “वे हमेशा भारत पाक के अच्छे संबंध होने की हिमायत करती थी साथ ही दोनों देशों की सांस्कृतिक एकता की बड़ाई करती थी और इन्हें जोड़ने के लिए तत्पर थी।
जब 2002 में वे पाकिस्तान गई थी तो एंकर के काश्मीर पर तीखे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था “ मैं यहां मेहमान की हैसियत से आई हूं तल्ख जवाब देने की मेरा अदब इजाजत नहीं देता और बैर करना मेरे मुल्क ने सिखाया नही है।“
इस प्रकार की प्रखर वक्ता ,दृढ़ निश्चय की मूर्ति ,मीडिया से दूर रहकर काम को तवज्जो देने वाली , सदन की गरिमा को सर्वोच्च रखने वाली 7 बार की सांसद ,3 बार की विधायक सुषमा स्वराज किडनी ट्रांसप्लांट और डायबिटीज के चलते 2019 में हमसे दूर हो गई।
उनके भाषण आज भी नेताओं के भाषण कला के लिए प्रकाश स्तंभ और उनके आदर्श आज भी राजनीतिज्ञो के लिए अनुकरणीय है। उनके बारे में पी. ए. संगमा ने में कहा था कि “इतने भी रुचिकर भाषण न दिया करिए सुषमा जी”।
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