"पांव पांव वाले भैया से मुख्यमंत्री तक का सफर"
अराजनीतिक तरीके से राजनीति करने वाला एक नेता जिसने मध्यप्रदेश के रंग रूप को बदल दिया।खस्ताहाल सड़कों को सरसराती हुई सड़कों में,कम उपज वाले खेतों को फसलों से लहराते खेतों में, उजड़े दिखते शहरों को चमचमाते शहरों में, बीमारू राज्य को प्रतिस्पर्धी राज्य में।नेता जिसने हाशिए में रखी महिलाओं को राजनीतिक योजनाओं के केंद्र में ला दिया और बहनों के भाई के साथ लड़के लड़कियों के मामा के रूप में खुद को स्थापित किया।
कृषक पृष्ठभूमि से आने वाले शिवराज सिंह चौहान ने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत 16 वर्ष की उम्र में एबीवीपी से की। शिवराज ने उच्च शिक्षा बरकतुल्ला विश्वविद्यालय भोपाल से की ।वे दर्शनशास्ञ में स्नातकोत्तर हैं । पढ़ाई के साथ वे राजनीति में भी सक्रिय रहे और छात्र संगठन के अध्यक्ष रहे।
जब इंदिरा सरकार ने आपातकाल लगाया तब शिवराज किशोरावस्था में थे और गुप्त रूप से सक्रिय थे इसी सिलसिले में उन्हें भोपाल जेल में बंद कर दिया गया। जेल की चारदीवारें में उन्हें जो मिला वह उनके भविष्य के लिया पन्ना के हीरों के मूल्य से कम न था।आपातकाल से बाहर आने के बाद वे एबीवीपी के अध्यक्ष रहे और उसके कुछ समय बाद मिले प्रमोशन ने उन्हें सीधा मध्यप्रदेश के भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया।अब शिवराज राज्य के सबसे काबिल नवयुवक थे जिन्हे भविष्य में भाजपा की कमान संभालने थी।
यह युवा नेता ने अपना लोहा 1989 में बनवाया , जब भाजपा ने क्रांति मशाल यात्रा निकाली इसका समापन भोपाल में होना था, और शिवराज उस समय भाजयुमो अध्यक्ष थे। उन्होंने संयुक्त मध्यप्रदेश के हर एक जिले में यात्राएं की। कई रातें तो कार की सीट को ही अपना बिस्तर बनाकर गुजारी।इसका फल कुछ ऐसा मिला की क्रांति मशाल यात्रा के दिन भोपाल में जब जमावड़ा हुआ तो पूरा भोपाल युवामय हो गया ।इसे देख यात्रा में शामिल, तत्कालीन भाजपा के शीर्ष चेहरे कुशाभाऊ ठाकरे ,राजमाता विज्याराजे सिंधिया चकित रह गए। राजमाता ने तो यह तक कह दिया कि "हर मां अपनी कोख में शिवराज जैसा बेटा चाहती है"
अब शिवराज का नाम भाजपा महकमे में गुजरने लगा और पहली नजर गई सुंदरलाल पटवा की जो उस समय भाजपा के प्रदेश में सबसे बड़े चेहरे थे । उन्होंने शिवराज को भाजपा से विधायक का टिकट दिया इतना ही नहीं शिवराज के कहने पर ही 23 युवा चेहरे भाजपा ने चुनाव उतारे । इस प्रकार शिवराज अब स्थापित नेता हो चुके थे।
कारवां बढ़ा और अटल जी को 10 वी लोकसभा में विदिशा से संसद लड़वाया तो शिवराज को बुलाया गया प्रचार के लिए । शिवराज ने अटल जी के साथ ऐसा प्रचार किया की वे अटल को भा गए और जीतने के बाद जब उन्होंने सांसदी छोड़ी तो अपनी जगह विदिशा से शिवराज को खड़ा किया ।चुनाव जीत सांसद बने शिवराज अब दिल्ली पहुंच चुके थे।
दिल्ली पहुंचे शिवराज गोविंदाचार्य के संपर्क में आए जो उस समय भाजपा के लिए सोशल इंजीनियरिंग कर रहे थे कुछ ऐसा समझे कि भाजपा के लिए ओबीसी चेहरा तलाश रहे थे। अपनी कर्मठता और समर्पण जैसी विशेषताओं के कारण शिवराज उन्हे पसंद आए। सांसद रहते हुए शिवराज अखिल भारतीय युवा मोर्चा के महासचिव रहे।साथ ही दिल्ली में भाजपा के बड़े चेहरे लालकृष्ण आडवाणी , प्रमोद जोशी और अरुण जेटली के बेहद करीबी हों गए जिसका फायदा कुछ सालो बाद उन्हें मिला।
हालांकि केंद्र में उन्हें कमेटी और संगठन में ही व्यस्त रखा जा रहा था जिससे वे न भारत के हो पा रहे थे ना मध्यप्रदेश के साल 2000 आते आते उन्होंने वापस मध्यप्रदेश आने का मन बना लिया । इसका पहला दांव उन्होंने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का चुनाव लड़कर खेला जो कुशभाऊ ठाकरे के विपरीत जाकर लड़ा हालांकि वे कुशाभाई के करीबी विक्रम वर्मा से चुनाव हार गए, लेकिन मध्यप्रदेश में वापसी के मनसूबे स्पष्ट कर दिए।
यही दौर था जब मध्यप्रदेश में भाजपा की वापसी हुई। उमा भारती के तेवरों और रैलियों ने एक लहर चला दी और भाजपा सरकार में आई और उमा प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी लेकिन किस्मत के खेल ने उन्हें तिरंगा केस में फंसा दिया और उनकी कुर्सी चली गई । बाबू लाल गौर मुख्यमंत्री बनाए गए लेकिन वो क्षणिक थे क्योंकि भाजपा एक ऐसा चेहरा ढूंढ रही थी जो लंबे समय तक मध्यप्रदेश में भाजपा को मजबूत रख सके। ऐसे में दिल्ली का प्रवास शिवराज को यहीं काम आया ।
राजनीतिक गलियारों में कहते है कि शिवराज एक बार मध्यप्रदेश विधानसभा दौरे में गए जब विधायको ने उन्हें देख मेज़ थपथपा दी,इस समर्थन का इशारा स्पष्ट था। यह सूचना जब दिल्ली आई तो शिवराज को दिल्ली से बुलावा आया और बाबूलाल गौर को दिल्ली से सीट खाली करने का संदेश। दिल्ली में आलाकमान के आंखो के तारे बने शिवराज बन गए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री।
मुख्यमंत्री बने शिवराज को पद इतने आसानी से नही मिला उसमे पहली अड़चन डाली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने जब बैठक के दौरान उन्होंने वोट के जरिए नेता चुनने की मांग रख दी लेकिन उनके बोलते ही उन्हे जब बाहर का रास्ता दिखाया गया तो चकित विधायको ने पूर्व मुख्यमंत्री का हाल देख 153 वोट शिवराज के पक्ष में डाल दिए।
दूसरी अड़चन आई रायसेन में लगे एक केस में जिसमे शिवराज को सजा हो सकती थी जिस बाद में हाईकोर्ट ने जनहित के नजरिए से खारिज कर दिया।
अब स्थापित हो चुके शिवराज को अपने आसपास की आंतरिक चुनौती की सफाई करनी थी जिसे शिवराज ने सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय ने फूट डाल कर दी।अब शिवराज मध्यप्रदेश में भाजपा के एकमात्र चमचमाते चेहरे रहे जो 20 तक चमचमाता रहा।
शिवराज ने मध्यप्रदेश के किसी एक वर्ग को नहीं बल्कि सभी को साधा। लाड़ली लक्ष्मी योजना , मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, तीर्थ दर्शन जैसी योजनाओं में उन्हें मुख्यमंत्री से जननायक और लोकप्रियता ने उन्हें मामा बना दिया।
मुख्यमंत्री रहते कृषि क्षेत्र में ऐसा कार्य किया की लगातार 7बार कृषि कर्मण अवार्ड मध्यप्रदेश आया। इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर तो भोपाल देश की सबसे स्वच्छ राजधानी लगातार बनती आ रही है। कुपोषण ,बाल मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में भी लगातार कमी आई है।
मध्यप्रदेश के पर्यटन को विश्वस्तरीय बनाया साथ ही ई गवर्नेंस में उल्लेखनीय कार्य किया। लोक सेवा गारंटी देने में मध्यप्रदेश देश में पहले स्थान पर है।
पिछले वर्ष लाई गई लाड़ली बहना योजना ने महिला के जीवन में एक नई क्रांति ला दी। पूरे मुख्यमंत्री काल में महिलाओं के लिए किए गए उनके कार्य ने प्रदेश में महिला को मुख्य राजनीतिक केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया जो महिला सशक्तिकरण में सरकार के योगदान की सबसे बड़ी मिशाल है।
इसके साथ ही शिवराज ने प्रदेश में सांप्रदायिक एकता को भी बनाए रखा जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है धार का सरस्वती मंदिर जहां वसंत पंचमी यदि शुक्रवार को पड़ जाए तो नमाज और सरस्वती पूजन के लिए झगड़े होना स्वाभाविक हो सकता है और ऐसा दौर शिवराज के शासनकाल में 2 बार आया दोनो बार शिवराज ने पूरी मध्यप्रदेश की फोर्स को धार में लगा शांतिपूर्वक नमाज और पूजा करवाई।
इतना बड़ा शासनकाल और धब्बे न लगे ऐसा होना बहुत मुश्किल है। शिवराज के समय हुआ व्यापम भर्ती घोटाला जिसमे न जाने कितने फर्जी डॉक्टर , इंजीनियर निकले और इसकी जांच में सैकड़ों अप्राकृतिक रूप से जानें गई।साथ ही अवैध रेत उत्खनन और युवाओं की बेरोजगारी चमकते चेहरे में काला धब्बा भी हैं।
इन सभी अच्छी बुरी घटनाओं के बाद भी मध्यप्रदेश में मामा का शासन महिलाओं के सशक्तिकरण और मध्यप्रदेश के विकास के लिए जाना जाएगा ।पूरे मध्यप्रदेश की पांव पांव से यात्रा करने वाले नर्मदापुत्र ने एक जननायक नेता की छाप छोड़ी जो एक हर राजनेता का सपना होता है।
"कुंभ के स्थान में चल रहा सियासी स्नान"
गंगा यमुना का संगम प्रयागराज, भारत के अध्यात्म को पोषित करता है।देश की इस आध्यात्मिक नगरी में 25 मई को लोकसभा चुनाव के मतदान होने है।इस समय प्रयागराज में राजनीतिक पारा आसमान छू रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिवेणी संगम में हाल ही में भाषण में कहा कि "समाजवादी पार्टी और कांग्रेस विकास विरोधी हैं ।दोनों पार्टी को कुंभ से ज्यादा अपने वोट बैंक की चिंता है। " प्रयागराज में कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त सभा आयोजित की गई थी जिसमें इतनी भीड़ जुट गई थी कि भीड़ बैरिकेड तोड़कर भाषण देते अखिलेश यादव तक पहुंच गई ऐसी स्थिति में सुरक्षा की दृष्टि से दोनों नेताओं को बगैर भाषण दिए ही वापस लौटना पड़ा। प्रयागराज ,देश की सबसे हॉट और चर्चित सीटों में से एक रही है।यह सीट राजर्षि के नाम से मशहूर भारत रत्न से सम्मानित पुरुषोत्तम दास टंडन की सीट है, जो इस सीट से पहले सांसद थे। यह देश को लाल बहादुर शास्त्री और वीपी सिंह के रूप में प्रधानमंत्री दे चुकी है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हेमवती नंदन बहुगुणा इस सीट से चुनाव लड़ चुके है।यह सीट देश के सबसे महानतम अभिनेता अमिताभ बच्चन की सीट रही है। साथ ही अपने समय में समाजवादी विचारधारा के कारण छोटे लोहिया के नाम से जाने जाने वाले ज्ञानेश्वर मिश्र तो भाजपा के संस्थापक सदस्य मुरली मनोहर जोशी भी सीट में अपनी सेवा दे चुके है।आज इन ऐतिहासिक व्यक्तियों की सीट में सेवा देने की जिम्मेदारी लेने के लिए कांग्रेस की ओर से उज्जवल रमण सिंह( पूर्व सांसद रेवती रमन सिंह के पुत्र हैं ) , भाजपा के नीरज त्रिपाठी से मुकाबले में हैं।इस बार भाजपा ने रीता लाल बहुगुणा जो मौजूदा सांसद है कि टिकट काटकर नीरज त्रिपाठी को दी है। प्रयागराज की इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभाएं मेजा , करछाना ,इलाहाबाद साउथ , बारा और कोरांव है।जिसमें तीन में भाजपा और एक में समाजवादी पार्टी के विधायक विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं साथ ही एक सीट में अपना दल का विधायक है। ऐसे में भाजपा यहां मजबूत नजर आती है। इलाहाबाद की सीट में 18 लाख मतदाता है।जिनमें से 6 लाख ब्राह्मण और मल्लाह वोट राजनीति की दिशा दशा तय करते हैं अब तक यहां पर उच्च जातियों से ही सांसद चुनते आए हैं ।2 लाख पटेल वर्ग के वोट हैं जो कि भाजपा का समर्थक वर्ग है । इस सीट पर 3 लाख अनुसूचित जाति के वोट हैं जो कि बसपा के कोर वोटर्स माने जाते हैं लेकिन इस बार बसपा के कमजोर होने से यह वोट जिस ओर जाएंगे वहां गणित बदल सकती है। सीट के इतिहास की बात करें तो 2009 में समाजवादी पार्टी के कुंवर रमन सिंह ने 38% के लगभग वोट शेयर लेकर बसपा के अशोक वाजपेई को हराया था।जिनके पास लगभग 31% वोट प्रतिशत था । 2009 में 43.51% लोगों ने वोट डाला था जो कि 2014 में बढ़कर 53.5% तक पहुंचा था जिसने वोट स्विंग में एक बड़ी भूमिका निभाई और 2014 के चुनाव में भाजपा ने +24 प्रतिशत वोट स्विंग प्राप्त कर 2009 के11% वोट शेयर से उठकर 35% के लगभग पहुंच गई ।इसमें समाजवादी पार्टी को लगभग 8% का नुकसान हुआ था और वह दूसरे नंबर पर रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फिर + 20% का वोट स्विंग प्राप्त हुआ और भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़कर लगभग 55% के आसपास चला गया। इस प्रकार भाजपा पिछले 15 सालों में 11% से बढ़कर 55% वोट शेयर तक पहुंच गई है। जो भाजपा के इस सीट पर मजबूती को दर्शाता है। लेकिन इस बार सपा और कांग्रेस का सम्मिलित वोट बैंक भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करता नजर आ रहा है , क्योंकि सपा के बड़े पटेल नेता कांग्रेस की ओर से खड़े उज्जवल रमण सिंह को भरपूर सहयोग दे रहे है साथ ही बसपा का वोट यदि आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के पास आता है ,तो यह भाजपा के लिए सिर दर्द साबित हो सकता है। राहुल अखिलेश की जनसभा में उमड़ी भीड़ भी जन समर्थन का एक संकेत है।
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